कैपेसटर क्या है ? ( capacitor in hindi )
Capacitor In Hindi- कैपेसटर एक Passive element है जो Energy को Electrical charge के फॉर्म में Store कर लेता है एक छोटी Rechargeable Battery की तरह कैपेसिटर बहुत ही कम समय में चार्ज होता है और डिस्चार्ज हो जाता है कैपेसिटर को hindi में संधारित्र कहते है और इसे कंडेनसर भी कहते है
संधारित्र के विद्युत संचित करने के गुण को धारिता कहते हैं। धारिता की इकाई Farad है।
कैपेसिटर की परिभाषा
यदि किन्हीं दो धातुई प्लेटों या परतों को किसी वैद्युतरोधी पदार्थ के परावैद्युत (dielectric) द्वारा पृथक् किया जाए तो वह एक संधारित्र बन जाता है। संधारित्र विद्युत ऊर्जा को आवेशित कर संचित तथा विसर्जित (discharge) करने वाला निष्क्रिय अवयव है।
विभिन्न प्रकार के संधारित्र तथा उनके अनुप्रयोग ( Different types of Capacitor In Hindi )
संधारित्र मुख्यतः दो वर्गों में विभक्त किए जाते हैं
(i) स्थिर संधारित्र-इस प्रकार के संधारित्र का मान उपयोग में लेते समय परिवर्तित नहीं होकर समान रहता है।
(ii) परिवर्ती संधारित्र-ऐसे संधारित्रं जिनका मान प्रयोग में लेते समय परिवर्तित किया जा सकता है।
संधारित्र में प्रयोग में लिए जाने वाले परावैद्युत के अनुसार ही संधारित्र का नाम पड़ जाता है, जैसे-वायु संधारित्र, अभ्रक संधारित्र, कागज संधारित्र, मृतिका (ceramic) संधारित्र, प्लास्टिक संधारित्र इत्यादि।
(a) वायु संधारित्र (Air Capacitor)
इस प्रकार के संधारित्र में माध्यम परावैद्युत (dielectric) के स्थान पर प्लेटों के मध्य वायु परावैद्युत का कार्य करती है। इस प्रकार के संधारित्र प्रायः परिवर्ती बनाए जाते हैं इनमें एल्युमीनियम की पट्टिकाएं एक-दूसरे के अंदर धारिता को कम अधिक करती हैं।
धारिता में परिवर्तन रेखीय (linear) या अरेखिक किया जाता है। यह संधारित्र चित्र में प्रदर्शित है। प्रतिवर्ती संधारित्र में एक प्लेट या प्लेटें स्थिर तथा अन्य प्लेट या प्लेटें चलायमान (movable) होती हैं। प्लेटें अंदर जाने पर धारिता बढ़ती है तथा प्लेटें बाहर निकलने पर धारिता घटती है।
अनुप्रयोग
- FM रेडियो रिसीवर ट्यूनिंग हेतु।
- श्रृव्यावृत्रि (audio frequency) दोलित्र (oscillator)
- परीक्षण उपकरणों में।
(b) अभ्रक संधारित्र (Mica Capacitor)
इस संधारित्र की प्लेटें टिन पटियों (tin foils) या टिन शीट की बनाई जाती हैं। धातु प्लेटों को दो सैट्स में बहु परत में बनाया जाता है। ये संधारित्र स्थिर तथा परिवर्ती दोनों प्रकार के बनाए जाते हैं। ट्रीमर, पेडर संधारित्र परिवर्ती माइका प्रकार के बनाए जाते हैं। ये 5 pF से 10 uF परास में बनाए जाते हैं। इन संधारित्रों का आवृत्ति परास 10 MHz तक होता है।
अनुप्रयोग
- RF (रेडियो आवृत्ति) परिपथ
- रेडियो ट्रांसमिशन
- ट्रीमर, पैडर के रूप में ट्यूनिंग करने के लिए।
(c) कागज संधारित्र (Paper Capacitor)
इस प्रकार के संधारित्र में परावैद्युत के रूप में मोम (wax), रेजिन (resin) से संसेचित क्राफ्ट पेपर का प्रयोग किया जाता है।
संधारित्र दो प्रकार के बनाए जाते हैं। पहली प्रकार में कागज की शीट पर केवल एक ओर व दूसरी प्रकार में कागज की शीट के दोनों ओर धात्विक कोटिंग की जाती है। परतो (layer) को लपेटने के पश्चात् संधारित्र को मोम (wax) में डुबोकर प्लास्टिक या धातु के आवरण से ढका जाता है।
इन संधारित्रों की परास 1000 PF से 1 uF तक होती है, और इन संधारित्रों की वोल्टता परास 3000 से 1500Vतक होती है।
अनुप्रयोग
- 1 phase स्थाई चालित मोटर में
- शक्ति गुणांक सुधार (PF improvement)
- RF bypass
- युग्मन (coupling) हेतु।
- अवरोधन (blocking)।
- डी कप्लिंग संधारित्र के रूप में।
(d) मृतिका संधारित्र (Ceramic Capacitor)
यह स्टैटाइट (steatite) सिरेमिक के उत्पाद से बनाया जाता है जिसकी विद्युतशीलता उच्च होती है। इसे पीसकर बंधक (binda) मिलाकर, आकार में दबाकर 1400°C पर पकाकर बनाया जाता है। ये विभिन्न पर्ल (pearl), चकती (disc) आयताकार, Pinup, ट्यूबलर आकार में बनाए जाते हैं। इनकी परास 5 mF से 10 uF होती है तथा वोल्टता रेटिंग 60V से 10 kV होती है।
अनुप्रयोग
- मध्यम तरंग ट्रांसमीटर।
- सेना उपकरणों में।
- उच्च गुणवत्ता (Q) परिपथ।
- उच्च शक्ति प्रवर्धक में।
(e) वैद्युत विष्लेश्य संधारित्र (Electrolytic Capacitor)
इस प्रकार के संधारित्र में एल्युमीनियम या टेन्टेलम (tantalum) ऑक्साइड की एक बहुत पतली परत के परावैद्युत का प्रयोग किया जाता है। ये ध्रुवीकृत (polarized) अर्द्ध ध्रुवीकृत (semipolarized) तथा अध्रुवीकृत प्रकार के बनाए | जाते हैं। ध्रुवीकृत संधारित्र का प्रतीक है तथा अध्रुवीकृत का प्रतीक है।
वैद्युत विष्लेश्य संधारित्र की धारिता परास 1 से 2000 uF, वोल्टता परास 1 से 50 V तथा तापक्रम गुणांक 200 से 500 PPM/°C है।
यह (-) चिन्हित होता है, छोटी लीड (-) टर्मिनल की पहचान के लिए बनाई जाती है। अंकित वोल्टता से अधिक वोल्टता होने पर यह क्षतिग्रस्त हो जाता है।
अनुप्रयोग
- पावर प्रदाय फिल्टर परिपथ में
- Bypass परिपथ में
- प्रवर्धक परिपथ (Amplifier circuits)
- युग्मन के लिए (For coupling)
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कैपेसिटर व इसका सिद्धान्त (Capacitor In Hindi)
कैपेसिटर एक प्रबन्ध है जिसमें दो चालकों के मध्य डाइलैक्ट्रिक इन्सुलेटिंग पदार्थ लगा होता हा क इलेक्ट्रिकल एनर्जी को एकत्रित करना होता है और आवश्यकता के समय इससे इस एनजी को ले लिया जाता है|
इसमें मुख्य रूप से चालक और इन्सुलेटिंग पदार्थ होते हैं। यह चालक टिन, एल्युमिनियम आदि धातु होती है। इन्सुलेटिंग पदार्थ माइका, एबोनाइट, वायु आदि होते हैं। दोनों प्लेटे एक-दूसरे के समानान्तर होती हैं जिनके मध्य में इन्सुलेटिंग पदार्थ लगाया जाता है। इस इन्सुलेटिंग पदार्थ के कारण दोनों चालक या प्लेंटे एक-दूसरे से मिल नहीं पाती हैं। दोनों के सिरों से टर्मीनल निकाले जाते हैं।
दो प्लेंटें समानान्तर में लगी दिखाई गई हैं जिसमें एक स्विच और एक बैट्री भी लगी होती है। बैट्री का पॉजिटिव सिरा एक प्लेट A से और दूसरा सिरा दूसरी प्लेट B से लगा होता है।
जब स्विच s को ऑन किया जाता है तो सर्किट में करन्ट का क्षणिक प्रवाह होता है जिससे कैपेसिटर चार्ज हो जाता है। प्लेट Aपॉजिटिव एवं प्लेट B नेगेटिव । बैट्री का नेगेटिव सिरा, प्लेट B को इलैक्ट्रोन्स सप्लाई करता है और उसे निगेटिवली चार्ज कर देता है। कैपेसिटर में स्थिर वैद्युतिक प्रेरण क्रिया’ (electro static induction action) के कारण प्लेट B. प्लेट A के कछ इलैक्ट्रोन्स को दूर विकर्षित कर उसे पॉजिटिवली चार्ज कर देती है। ये विकर्षित इलैक्ट्रोन्स, बैटी के पॉजिटिव सिरे के द्वारा आकर्षित कर लिए जाते हैं। इस प्रकार, बैट्री के निगेटिव सिरे से पॉजिटिव सिरे की ओर इलैक्ट्रोन्स के क्षणिक प्रवाह के कारण कैपेसिटर चार्ज हो जाता है।
कैपेसिटर की प्लेट्स के बीच एक विभवान्तर (p.d.) विकसित हो जाता है। यह विभवान्तर अपने शिखर मान तक पहुँचने में कुछ समय लेता है और इसी समय में चार्जिग करन्ट अपने शिखर मान से शून्य पर पहुँच जाती है। यदि अब कैपेसिटर को बैट्री से पृथक कर दिया जाए और इसकी प्लेट्स को एक तार से ‘शॉर्ट-सर्किट’ कर दिया जाए तो विद्युत चिंगारी पैदा होती है। यह चिंगारी सत्यापित करती है कि कैपेसिटर में चार्ज उपस्थित था। कैपेसिटर के चार्ज हो जाने पर हम देखते हैं कि-
(i) प्लेट A से प्लेट B की ओर सर्किट के माध्यम से इलैक्ट्रोन्स के स्थानान्तरण के फलस्वरूप ही कैपेसिटर में चार्ज एकत्र होता है।
(ii) सर्किट में केवल क्षणिक करन्ट ही बहती है परन्तु डी.सी. लगातार सर्किट में नहीं प्रवाहित हो सकती।
(iii) जब तक कैपेसिटर में चार्ज मौजूद रहता है तब तक उसका डाइलैक्ट्रिक तनाव (Strain) युक्त रहता है।
(iv) किसी डाइलैक्ट्रिक की प्रति मिलीमीटर मोटाई के लिए अधिकतम किलो वोल्ट मान जो वह सुरक्षित रूप से सह सकता है। उसकी डाइलैक्ट्रिक स्ट्रैन्थ कहलाती है।
कैपेसिटर्स के प्रकार एवं उनके उपयोग (Different types of Capacitors and their Uses)
मान नियंत्रण के आधार पर कैपेसिटर्स मुख्यतः निम्न दो प्रकार के होते हैं :
- स्थिर मान कैपेसिटर (Fixed Capacitor)
- अस्थिर मान कैपेसिटर (Variable Capacitor)
- स्थिर-मान कैपेसिटर (Fixed Capacitor): जिस कैपेसिटर का कैपेसिटेंस मान नियत रहता है वह स्थिर मान कैपेसिटर कहलाता है। इसमें प्रयुक्त डाइलैक्ट्रिक के आधार पर ये निम्न प्रकार के होते हैं
(क) पेपर कैपेसिटर (Paper Capacitor)
(ख) माइका कैपेसिटर (Mica Capacitor)
(ग) इलैक्ट्रोलाइटिक कैपेसिटर (Electrolytic Capacitor)
(घ) सैरामिक कैपेसिटर (Ceramic Capacitor)
(क) पेपर कैपेसिटर
इसमें दो लम्बी व पतली टिन अथवा एन्युमिनियम की पट्टियाँ होती हैं जिन्हें तीन मोमी कागज की पटिटयों के बीच एकान्तर क्रम में लगाया जाता है। सभी पटिट्या को लपेटकर बेलन का रूप दे दिया जाता है। लपेटते समय यह ध्यान रखा जाता है। कि एक चालक पट्टी दूसरी चालक पट्टी को स्पर्श न करे। इस बेलन को या तो बिटयमन पदार्थ से ढक दिया जाता है अथवा एन्युमिनियम के बेलनाकार पात्र में रख दिया जाता है। दोनों चालक पटियों से एक-एक कनैक्टिंग लीड जोड़ दी जाती है।
(ख) माइका कैपेसिटर
इसमें अनेकों महीन चालक प्लेट्स एक-दूसरे से अभ्रक शीट्स द्वारा पृथक रखी जाती हैं। प्लेटस को एकान्तर क्रम में दो कनैक्टिंग लीड्स से जोड़ दिया जाता है। प्लेट 1,3,5…..आदि एक लीड से तथा प्लेट 2.4, 6….आदि दूसरी लीड से। इस दूरी व्यवस्था को बिट्यूमन पदार्थ से ढक कर आयताकार ठोस का रूप दे दिया जाता है।
(ग) इलैक्ट्रोलाइटिक कैपेसिटर (Electrolytic Capacitor)
इसमें एक एल्युमिनियम पात्र में एल्युमिनियम की प्लेटस का एक सैट एल्यमिनियम बोरेट अथवा सोडियम फॉस्फेट के घोल में डुबोकर रखा जाता है। इन कैपेसिटर्स को केवल डी सी सर्किटस में ही प्रयोग जोड़ दिया जाता है क्योंकि जब प्लेट्स को डी.सी. सप्लाई के पॉजिटिव सिरे से तथा पात्र को सप्लाई के नेगेटिव सिरे से दिया जाता है तो घोल में एक रासायनिक क्रिया होती है। इस क्रिया के फलस्वरूप, एल्यमिनियम प्लेटस पर यमिनियम ऑक्साइड की एक पतली पर्त पैदा हो जाती है जो प्लेट्स तथा पात्र के (अथवा घोल के) बीच डाइलैक्ट्रिक का कार्य करती है।
(घ) सैरामिक कैपेसिटर
इसमें एल्युमिनियम की दो प्लेट्स होती हैं जो एक-दूसरे से सैरामिक कम्पाउण्ड की पर्त टारा पथक की हुई होती हैं। सभी प्रकार के कैपेसिटर्स में से यह सबसे छोटे आकार वाला कैपेसिटर होता है। इसका कैपेसिटेंस मान 5pF से 0.1 uF तक होता है और यह इलैक्ट्रोनिक सर्किट्स में प्रयोग किया जाता है।
- अस्थिर मान कैपेसिटर (Variable Capacitor): जिस कैपेसिटर का कैपेसिटेस मान, एक पूर्व निर्धारित मान सीमा में परिवर्तित किया जा सकता है, वह अस्थिर मान कैपेसिटर कहलाता है।
इसमें एल्युमिनियम से बनी प्लेट्स के दो समूह होते हैं जो ‘रोटर’ एवं ‘स्टेटर’ कहलाते हैं। प्लेटस के बीच वायु, डाइलैक्ट्रिक का कार्य करती है। जब रोटर प्लैटस, स्टेटर-प्लेट्स के द्वारा पूरी तरह ढक जाती है तो कैपेसिटेंस का मान अधिकतम होता है। इसके विपरित, जब रोटर-प्लेटस, स्टेटर-प्लेट्स से पूरी तरह बाहर होती है तो कैपेसिटेंस का मान न्यूनतम होता है।
यह कैपेसिटर्स रिसीवर्स, ट्रान्समिटर्स आदि में प्रयोग किया जाता है और एयर गैंग कैपेसिटर या गैंग कैपेसिटर नाम से जाना जाता है।
कैपेसिटर्स के वैद्युतिक उपयोग (Electrical Uses of Capacitor In Hindi)
- सिंगल फेज मोटर में : सिंगल फेज मोटर में एक फेज को दो भागों में विभक्त करने के लिए कैपेसिटर प्रयोग किया जाता है, जैसे छत के पंखे व मेज के पंखे की मोटर में।
- फ्लोरसैंट ट्यूब में : फ्लोरसैंट ट्यूब के ‘स्टार्टर में ट्यूब को चालू करने के लिए कैपेसिटर प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त ट्यूब के समानान्तर क्रम में एक कैपेसिटर प्रयोग किया जाता है। जिससे कि ट्यूब निकट के रिसीवर्स आदि के रिसेप्शन में व्यवधान पैदा न करे।
- इन्डक्टिव सर्किट्स में : सभी प्रकार के इन्डक्टिव सर्किट्स में पावर फैक्टर का मान सुधारने के लिए कैपेसिटर प्रयोग किया जाता है।
- डिस्ट्रीब्यूटर्स में : ऑटो वाहनों के डिस्ट्रीब्यूटर्स में स्पार्किग को घटाने के लिए कैपेसिटर प्रयोग किया जाता है, जैसे पैट्रोल चालिलत कार, बस, ट्रक आदि में।
कन्डैसर की कैपेसिटी निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है
(a) प्लेटों के क्षेत्रफल के सीधे अनुपात में।
(b) प्लेटों के बीच की दूरी के उल्टे अनुपात में।
(c) प्लेटों के बीच के इन्सुलेशन की प्रकृत्ति पर (Dielectric constant)
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कैपेसिटर का कनेक्शन कैसे करते हैं
कैपेसिटर को सर्किट में दो तरह से लगाया जा सकता हैं।
- Series Connection
- Parallel Connection
संधारित्रों का श्रेणी क्रम संयोजन (Series Combination of Capacitors)
यदि एक संधारित्र का ऋण (-) सिरा दूसरे संधारित्र के धन (+) सिरे से व दूसरा ऋण सिरा तीसरे संधारित्र के धन टर्मिनल से संयोजित किया जाए तो इसे श्रेणी क्रम संयोजन कहते हैं। इस संयोजन में सभी संधारित्रों का आवेश (q) समान होता है।
यदि n संधारित्र श्रेणी क्रम में संयोजित हैं तो
दुसरे शब्दों में ,
जब दो या दो से अधिक कैपेसिटरों को सीधे ही सिरे से सिरे जोड़ते जायें तो वह सीरीज कनेक्शन बन जाता है। इसमें प्रत्येक कैपेसिटर का चार्ज समान होता है परन्तु इनका वोल्टेज भिन्न-भिन्न होता है।
V=V+V2+V3
तुल्य धारिता, न्यूनतम धारिता से भी कम रहती है।
संधारित्रों का समान्तर क्रम संयोजन (Parallel Combination of Capacitors)
जब प्रत्येक संधारित्र के एक धन सिरे को स्रोत या प्रदाय के धन टर्मिनल से तथा दूसरे ऋण सिरों को प्रदाय के ऋण टर्मिनल से जोड़ा जाए तो संधारित्र समान्तर क्रम में संयोजित कहलाते हैं।
दुसरे शब्दों में ,
जब दो या दो से अधिक कैपेसिट्र इस प्रकार कनैक्ट किए जाते हैं कि उनकी पॉजिटिव – प्लेटें एक स्थान पर और नेगेटिव प्लेटें दूसरे स्थान पर लगी हों तब वह पैरेलल कनैक्शन बन जाते हैं।
समान्तर क्रम में सभी संधारित्रों पर विभवान्तर समान तथा आवेश भिन्न होता है।
यदि n संधारित्र समान्तर क्रम में संयोजित हैं तो
C=C1+C2+ C3………..
धारिता क्या है (capacitance in hindi)
संधारित्र के विद्युत संचित करने के गुण को धारिता कहा जाता है या प्लेटों के मध्य इकाई विभवान्तर उत्पन्न करने के लिए आवश्यक आवेश (charge) की मात्रा को धारिता कहा जाता है। किसी संधारित्र की दो प्लेटों में किसी एक पर ए कूलम आवेश देने पर प्लेटों के मध्य V वोल्ट का विभवान्तर स्थापित होता है।
धारिता की इकाई Farad है इसे कूलॉम प्रति वोल्ट (coulomb/volt) से भी दर्शाया जाता है।
1 Farad = Coulomb/Volt
एक फैरड धारित्र की धारिता वह होती है जिसमें कूलॉम वैद्युत आवेश हेतु एक वोल्ट के विभवान्तर की आवश्यकता होती है।
फैरड एक बहुत बड़ी इकाई है इसकी छोटी इकाईयां माइक्रो फैरड, नैनो फैरड (nF) तथा माइक्रो माइक्रो फैरड (ULF) है।
कैपेसिटर का आवेशन व विसर्जन
धारित्र का आवेशन (Charging of a capacitor)
चित्रानुसार दर्शाया गया है कि, परिपथ जिसमें प्रतिरोध R,धारित्र C के श्रेणीक्रम में संयोजित है और परिपथ के पार्श्व में स्थिर दिष्ट धारा वोल्टता Vलगाई गई है। स्विच S को टर्मिनल 1 पर लाते समय धारित्र के पार्श्व में विभवान्तर शून्य होता है परन्तु अन्त में बढ़कर प्रदाय वोल्टता V के तुल्य हो जाता है। वोल्टता बढ़ते समय धारित्र प्रदाय से ली गई ऊर्जा को स्थिर विद्युत् ऊर्जा के रूप में एकत्रित करता है। मान लीजिये कि किसी भी क्षण धारित्र के पार्श्व में वोल्टता V वोल्ट और धारित्र में एकत्रित आवेश q कूलम्ब है।
धारित्र का विसर्जन (Discharging of a capacitor)
मान लीजिए इस समय धारित्र के पार्श्व में वोल्टता V है। विसर्जन में धारित्र का आवेश कम होने लगता है और धारा विपरीत दिशा में बहना प्रारम्भ कर देती है। मान लीजिए कि धारा का तात्क्षणिक मान । और धारित्र का तात्क्षणिक आवेश है। चूंकि स्विच को बिन्दु 2 पर लाने से परिपथ से प्रदाय का सम्बन्ध विच्छेदित हो जाता है।
कैपेसिटर कैसे चेक करे
यदि संधारित्र की निरंतरता की जाँच करने पर मीटर की सुई कोई विक्षेपण नहीं देती है, जिसका अर्थ है कि अधिकतम प्रतिरोध देखा जाता है। तो संधारित्र सही हो सकता है और यह खुला भी हो सकता है। क्योंकि न तो दायां संधारित्र dc से गुजरता है और न ही खुला संधारित्र।
शॉटिंग कंडीशन :- यदि मीटर से कैपेसिटर की निरंतरता की जांच करने पर मीटर की सुई पूर्ण विक्षेपण दिखाती है। यानी अगर मीटर की सुई बाएं से दाएं शून्य पर आती है, तो कैपेसिटर छोटा होता है।
आज आपने क्या सीखा :-
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