दोस्तों आज इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि लुब्रिकेशन क्या है, लुब्रिकेशन किसे कहते है, Lubrication in Hindi और स्नेहक कितने प्रकार के होते है, लुब्रिकेशन/स्नेहन की विभिन्न विधियां के बारे में. इस आर्टिकल में बहुत ही अच्छे तरीके से इन सब के बारे में जानकारी देने वाला हूं| तो चलिए शुरू करते हैं |
What is lubrication (लुब्रिकेशन क्या है)
जब दो सतह एक-दूसरे के सम्पर्क में रहकर आपेक्षिक गति करती है तो घर्षण (friction) उत्पन्न होता है। यह घर्षण मिलने वाले अंगों (mating parts) की गति को प्रतिरोध बल प्रदान करता है जिसके कारण शक्ति (power) की हानि होती है। इंजीनियरिंग कार्यों में प्रयोग होने वाली विभिन्न प्रकार की मशीनों, उपकरण इत्यादि में कुछ अवयव एक-दूसरे के सम्पर्क में रहकर विभिन्न प्रकार की गति करते हैं। जैसे बियरिंग, गीयर, पिस्टन आदि। अवयवों के परस्पर सम्पर्क में रहकर गति करने से घर्षण के कारण उनमें टूट-फूट (wear and tear) की सम्भावना बनी रहती है तथा उनको बदलने की जरूरत पड़ती रहती है। अतः सम्पर्क सतहों को घर्षण के कारण घिसने एवं टूट-फूट से रोकने के लिये, इन सतहों के बीच में स्नेहक (lubrication) की पतली परत बना दी जाती है, जिसे स्नेहन (lubrication) करना कहते है|
मशीनों का स्नेहन इतना महत्त्वपूर्ण है जितना कि मानव शरीर में रुधिर का चक्रीकरण आवश्यक है। जब दो mating surface स्नेहक की पतली सतत फिल्म से पूर्णतया अलग रहती है तब यह फिल्म स्नेहन (film lubrication) कहलाता है। जब mating surfaces के बीच उनको अलग करने के लिये स्नेहक काफी नहीं होता है तब यह बाउन्ड्री स्नेहन (boundary lubrication) कहलाता है। इसमें मेटिंग सतह कभी-कभी ही सम्पर्क में आती है।
स्नेहक/लुब्रिकेशन के प्रकार (Types of lubrication)
लुब्रिकेशन तीन प्रकार के होते है।
1. तरल (liquid)
2. अर्द्ध ठोस (semi solid)
3. तरल (liquid)
4. गैस (Gas)
ठोस लुब्रीकेन्ट (Solid lubricants):
ग्रेफाइट (graphite), लैड सल्फाइड, माइका (mica), टाल्क (talc), मोम आदि लुब्रीकेन्ट के उदाहरण हैं। ठोस लुब्रीकेन्ट को अर्द्धठोस लुब्रीकेन्टों के साथ मिश्रित कर बियरिंग में प्रयोग किया जाता है।
अर्द्धठोस लुब्रीकेन्ट (Semi-solid lubricants):
इसके अन्तर्गत वे लुब्रीकेन्ट आते हैं जो साधारण room temperature पर नहीं बहते। अधिकतर अर्द्धठोस लुब्रीकेन्ट मिनरल ऑयल तथा फैटी ऑयल (fatty oils) से बनाये जाते हैं। अर्द्धठोस लुब्रीकेन्ट सामान्यतः ग्रीस (greases) के नाम से जाने जाते हैं।
तरल लुब्रीकेन्ट (Liquid lubricants):
इसके अन्तर्गत सभी प्रकार के मिनरल ऑयल, पशु एवं वेजिटेबल ऑयल आते हैं। मशीन लुब्रीकेशन के लिए मिनरल ऑयल प्रयुक्त किये जाते हैं। मिनरल ऑयल पैराफिन, नेफ्थालीन, एयरोमेटिक तथा असंतृप्त हाइड्रोकार्बन को मिलाकर बनाये जाते हैं। एनिमल ऑयल में lardoil तथा sperm oil प्रमुख हैं तथा वेजेटेबल ऑयल में olive oil, cotton seed oil तथा linsed oil आदि आते हैं।
गैस लुब्रीकेन्ट (Gas lubricants):
इसके अन्तर्गत वायु, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन आदि गैसों का प्रयोग किया जाता है।
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लुब्रिकेंट/स्नेहक के गुण (properties of lubricants)
- श्यानता की परास उच्च होनी चाहिए।
- ताप के साथ श्यानता (viscosin में परिवर्तन कम होना चाहिए।
- स्नेहक की बियरिंग के साथ कोई रासायनिक क्रिया नहीं हाना चाहिए।
- इसका रासायनिक स्थायित्व उच्च होना चाहिए।
- स्नेहक भौतिक स्थायित्व में होना चाहिए, ताकि दाब आदि गुणा परिवर्तन न आए।
- प्रत्येक स्नेहक अम्ल व क्षार से मुक्त होना चाहिए।
- स्नेहक सस्ता होना चाहिए।
- स्नेहक में वाष्पन व पायसीकरण नहीं होना चाहिए।
- स्नेहक में कार्बन कणों की मात्रा कम होनी चाहिए।
- यह ड्यूरेबल होना चाहिए।
- स्नेहक की आपेक्षिक ऊष्मा अधिक होनी चाहिए, ताकि ऊष्मा का अधिकतम भाग इसके साथ निकल जाए व भाग ठण्डे रह सकें।
- इसका बहाव बिन्दु व घर्षण गुणांक कम होना चाहिए।
- ज्वलन बिन्दु अधिक होना चाहिए।
- स्नेहन अधिक महंगा नहीं होना चाहिए, नहीं तो अनुरक्षण व्यय बहत ही बढ़ जाएगा।
- अवयवों के साथ इसका संसंजन अच्छा होना चाहिए।
- न्यूनतम कन्सिस्टेन्सी होनी चाहिए।
- रनेहक में अम्लता का गुण नहीं होना चाहिए।
लुब्रिकेंट/स्नेहक के उद्देश्य (Objects of Lubricant)
स्नेहक के निम्नलिक उद्देश्य हैं
- चल भागों में घर्षण को कम करके उसमें होने वाली पावर हानि की कम करना।
- चल भागों का निघर्षण व विदारण कम करना।
- निघर्षण व विदारण के कारण उत्पन्न धातु व कार्बन कणों को दूर कर इंजन की सफाई करना।
- घर्षण के कारण उत्पन्न ऊष्मा का अवशोषण करके इंजन के विभिन्न भागों को ठण्डा करना।
- पिस्टन वलय व सिलेण्डर की दीवारों के बीच के स्थान को सील करके कार्यकारी तरल के क्षरण को रोकना। 6. आघात और कम्पन को सहन करने के लिए इंजन अवयवों के लिए गद्दी जैसा कार्य करना।
- सतहों को संक्षारण (corrosion) से बचाना।
- बियरिंग में घर्षण से उत्पन्न ऊष्मा को बाहर फेंकना।
- बियरिंग को जंग आदि से बचाना।
- रोलिंग बियरिंग में स्नेहक, गेंद व रेस के मध्य घर्षण कम करते हा
- बियरिंग की सीलिंग कर उन्हें धूल व गंदगी से बचाते हैं। |
- स्नेहकों का बहाव, गंदगी को अपने साथ बहाकर bearings का सा करता रहता है।
लुब्रिकेशन/स्नेहन की विभिन्न विधियां (Various Methods of Lubrication)
Gravity system
(i) Can oiling
(ii) Wick lubrication
(iii) Sight feed lubrication
Mechanical system unforced
(i) Ring lubrication
(ii) Splash lubrication
(iii) Oil Bath lubrication
Forced feed system
(i) Bypump
(ii) Banjo lubrication
1.Gravity System
इस विधि में गुरूत्व बल के द्वारा ही तेलों को विभिन्न भागों में पहुंचाया जाता है।
(i) कुप्पी से तेल देना (Can Oiling)-इस विधि में एक can में तेल भर दिया जाता है। आवश्यक स्थानों पर हाथ के द्वारा ही तेल देते हैं। यह विधि साधारण कार्यों के लिए बहुत प्रचलित है।
(ii) बत्ती स्नेहक (Wick Lubricants) यह विधि स्थायी इंजनों के लिए काफी प्रचलित है।
(ii) दर्श प्रभरण स्नेहक (Sight Feed Lubricants)-इस प्रकार के lubricator का प्रयोग भी व्यवहार में काफी होता है, इसे drop feed oiler भी कहते हैं।
2.Mechanical System Unforced
इस विधि के द्वारा विभिन्न भागों का स्नेहन, मशीन या इंजनों आदि के गतिशील भागों द्वारा ही होता है।
(i) वलय स्नेहक (Ring Lubricants)-इस विधि के द्वारा क्षैतिज घूर्णक पिण्डों के बियरिंग का स्नेहन बहुत ही आसानी से किया जाता है।
(ii) स्प्लै श स्नेहक (Splash Lubricants)-यह विधि स्थिर इंजनों में ही काम में ली जाती है। उसके लिए यह आवश्यक है कि फ्रेंक कैसे पूर्णतया बंद होना चाहिए, ताकि तेल बाहर न निकल सके। साथ ही आवश्यक है कि तेल तल आवश्यक चिन्ह तक रहे। इसका प्रयोग छोटे व तीव्र गति के engines के लिए किया जाता है। यह विधि ऊर्ध्वाधर व क्षैतिज दोनों ही प्रकार के engines के लिए काम में ली जाती है।
(iii) तेल कुण्ड स्नेहक (Oil Bath Lubricants)-इस विधि में gears, शृखलाओं आदि का स्नेहन किया जाता है। इस विधि में घूमते हुए भाग तेल कुण्ड में (oil bath) में डूबे रहते हैं। इससे आवश्यक भागों में oil पहुंचाया जा सकता है।
3. Forced Feed System
इस विधि द्वारा विभिन्न भागों का स्नेहन बलकृत होता है। इसमें पिस्टन आदि का स्नेहन एक प्रकार के पम्प से किया जाता है।
(i) पम्प स्नेहक (Pump Lubricants)-इसमें आगार से आने वाली oil की मात्रा को पेंच द्वारा control किया जाता है। दूसरी ओर एक piston । होता है जो इंजन से ही चलाया जाता है।
(ii) अपकेन्द्रीय स्नेहक (Banjo Lubricants)-अपकेन्द्रीय बल के द्वारा किए जाने वाले स्नेहन को banjo प्रणाली कहते हैं। इस विधि में स्नेहक तेल एक घूर्णक वलयन के अंदर प्रविष्ट करता है। यह विधि प्रायः छोटे-छोटे इंजनों में अधिक काम में ली जाती है।
यान्त्रिक प्रणाली (Mechanical System)
इस विधि में विभिन्न अवयवों का स्नेहन मशीन या इन्जन के चल अवयवों द्वारा होता है।
(a) वलय स्नेहक – इस विधि में एक वलय की सहायता से स्नेहन किया जाता है। इस प्रकार के स्नेहक में चित्र 1 में दिखाए अनुसार शाफ्ट पर एक या अधिक वलय लगा दी जाती है। इन वलयों का व्यास शाफ्ट के व्यास से अधिक होता है।
जब शाफ्ट घूमता है तो वलय भी धीमी गति से उसके साथ घूमता है जिससे कुछ तेल वलय के साथ छिपकर शाफ्ट तक पहंचकर उसके ऊपर के चारों तरफ फैल जाता है। इस प्रकार बियरिंग सतहों को स्नेहित कर तेल वापस तेल आगार में गिरता रहता है, और यह क्रम चालू रहता है। इस विधि में शाफ्ट के रूप जाने पर स्नेहक रूक जाता है। कई बर वलयों के स्थान पर चेनों का प्रयोग भी किया जाता है। यही विधि प्रायः मध्यम गति से घूमने वाले शाफ्ट को स्नेहन करने के लिए उपयुक्त होती है।
(b) स्प्लैश-वहन – इस विधि का प्रयोग कम चाल वाले उर्ध्वाधर इन्जनों में किया जाता है। इन्जन के क्रैक केस के नीचे एक तेल सम्प (Oil sump) बना होता हैं। जिसमें स्नेहन तेल सदैव एक निश्चित तल तक रखा जाता है, तेल का तल देखने के लिए एक मजबूत छड़ (dip stick) होती है। यह छड़ तेल में डूबी रहती है।
कुछ इन्जनों में इस विधि द्वारा तेल निर्गत में आ सकता है, सिर पर गति में मुड़ा हुआ एक पाइप होता है जिसे स्कूप (scoop) कहते है। इस स्कूप से सम्बन्धित बियंरिंग ढक्कन में खांचे कटे रहते है, तथा इस खांचे से सम्बन्धित एक बने रहते है। जब संयोजी छड़ का बड़ा सिरा तेल में डूबता हुआ निकलता है तो तेल के छींटे उछलते है, जो सिलेण्डर दीवार का स्नेहन करते है। तथा मुख्य बियंरिग कैम शाफ्ट बियरिंग आदि में बने द्रोणिका (trough) में एकत्रित होकर उनका स्नेहन करता है।
(c) तेल कुण्ड स्नेहन – इस विधि से गियरों चेनों आदि का स्नेहन किया जाता है। इस विधि में घूमते हुए भाग तेल कुण्ड में डूबे रहते हैं। भागों क घूमने पर आवश्यक स्थानों पर तेल पहुंच जाता है। उपरोक्त सभी विधियां अति सुग्म है परन्तु इनमें मुख्य अवगुण यह है कि तेल की मात्रा बहुत कम पहुंच पाती है।
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Conclusion
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