दोस्तों आज इस आर्टिकल में आप जानेंगे की टैरिफ क्या है और यह कितने प्रकार का होता है, What is Tariff in hindi, टैरिफ के प्रकार, Types of Tariff in hindi : अगर आप भी है जानना चाहते हो तो इस आर्टिकल को पूरा पढ़ते रहिए | तो चलिए शुरू करते हैं
टैरिफ क्या है? (What is Tariff)
टैरिफ का अर्थ विद्युत ऊर्जा व्यय की वसूली के लिए प्रदाय कम्पनी द्वारा लिया जाने वाला शुल्क हैं। उपभोक्ताओं को प्रदान की गई विद्युत ऊर्जा की दर प्रदाय कम्पनी द्वारा निश्चित की जाती है। इसे टैरिफ या शुल्क दर कहते हैं।
टैरिफ निश्चित करने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाता है
(i) भार का प्रकार (घरेलू भार, वाणिज्यिक भार, औद्योगिक भार)
(ii) अधिकतम मांग
(iii) समय (दिन अथवा रात) जब भार की आवश्यकता हो
(iv) भार का शक्ति गुणक
(v) ऊर्जा का कुल उपभोग
टैरिफ का निर्धारण करने में उत्पादन की लागत, ऊर्जा वितरण की लागत तथा लाभ को ध्यान में रखा जाता है। सभी प्रकार के उपभोक्ताओं को शुल्क एक ही दर से निर्धारित नहीं किया जाता है। ऊर्जा प्रदाय कम्पनी द्वारा इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि उपभोक्ता किस आर्थिक स्तर के हैं जैसे- औद्योगिक क्षेत्रों को कृषि की अपेक्षा उच्च दर पर विद्युत विक्रय की जाती है क्योंकि किसानों की अपेक्षा फैक्ट्रियों के मालिक उच्च व्यय करने में समर्थ होते हैं।
टैरिफ के प्रकार (Types of Tariff)
साधारणतया निम्नलिखित टैरिफ के प्रकार प्लान प्रयोग में लिए जाते है-
1. साधारण या सरल टैरिफ (Simple Tariff)
इस टैरिफ के अनुसार ऊर्जा मूल्य व्यय ऊर्जा इकाइयों के उपयोग के आधार पर तय किया जाता है|
इस प्रकार के टैरिफ में प्रति यूनिट मूल्य शुल्क (Price charge) नियत रहता है। ऊर्जा मीटर के द्वारा उपभोक्ता द्वारा उपभोग की गई विद्युत ऊर्जा ज्ञात की जा सकती है।
सरल टैरिफ की हानियां (Disadvantages of Simple Tarifl)
(i)इस टैरिफ में सभी उपभोक्ताओं को एक माना जाता है जैसे-घरेलू, औद्योगिक व वाणिज्यिक प्रकार के उपभोक्ताओं को एक समान रेट पर विद्युत सप्लाई की जाती है।
(ii) इस टैरिफ प्लान में ऊर्जा मूल्य प्रति यूनिट काफी अधिक आता है।
(iii) इस टैरिफ में यह विद्युत का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित नहीं करती है।
2. फ्लैट रेट टैरिफ (Flat Rate Tariff)
इस. टैरिफ प्लान में विभिन्न प्रकार के उपभोक्ताओं से विभिन्न दरों पर ऊर्जा मूल्य लिया जाता है। उदाहरणार्थ प्रकाश भार और शक्ति भार के लिए दर अलग-अलग होती है। प्रत्येक प्रकार के उपभोक्ता के लिए ऊर्जा दर उपभोक्ता के नानत्व गुणक (Diversity Factor) एवं भार गुणक को ध्यान में रखकर निश्चित की जाती है।
यदि कोई उपभोक्ता x यूनिट विद्युत ऊर्जा खर्च करता है तथा ऊर्जा व्यय दर y रुपए प्रति यूनिट है तो उपभोक्ता का सम्पूर्ण व्यय xy रुपए होगा। फ्लैट रेट टैरिफ को निम्न प्रकार निरुपित करते हैं
C= AX
अतः बिल ऊर्जा खपत की मात्रा के अनुरूप अधिकतम मांग पर निर्भर करेगा।
फ्लैट रेट टैरिफ की हानियां (Diadvantages of Flat Rate Tarif)
(i)इसमें अलग भारों के लिए अलग-अलग मीटर लगाने की आवश्यकता पड़ती है, इसके कारण इस प्रकार की टैरिफ महंगी व जटिल होती है।
(ii) कुछ मुख्य उपभोक्ताओं के लिए उनके द्वारा खपत की गई ऊर्जा की दर के अनुसार शुल्क लिया जाता है, जबकि बड़े उपभोक्ताओं के प्रति यूनिट तय किए गए शुल्क को कम कर दिया जाता है अतः दूसरे उपभोक्ताओं की अपेक्षा बड़े उपभोक्ताओं से शुल्क कम लिया जाता है।
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3. स्ट्रेट मीटर रेट (Straight Meter Rate)
स्ट्रेट मीटर रेट टैरिफ को निम्न समीकरण से प्रदर्शित किया जा सकता है
C = By
इस प्रकार के टैरिफ में शुल्क दर उपयोग में ली गई यूनिट पर निर्भर करती है। इस टैरिफ को कभी-कभी घरेलू तथा व्यावसायिक उपभोक्ताओं के लिए भी प्रयोग में लिया जाता है।
स्ट्रेट मीटर रेट की हानियां (Disadvantages of Straight Meter Rate)
(i) इस टैरिफ में यह विद्युत का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित नहीं करती है।
(ii) इस टैरिफ में उपभोक्ता के द्वारा विद्युत का उपयोग नहीं करने पर भी उसे एक निश्चित शुल्क जमा करवाना पड़ता है।
4. ब्लॉक रेट टैरिफ (Block Rate Tariff)
इस टैरिफ प्रणाली में ऊर्जा खपत (Energy Consumption) को ब्लॉक में बांट दिया जाता है तथा प्रत्येक ब्लॉक के लिए ऊर्जा दर प्रति यूनिट तय कर दी जाती है। इस टैरिफ में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि इसमें यदि अधिक ऊर्जा इकाइयां व्यय की जाती है तो भार गुणक (Load Factor) बढ़ता है और ऊर्जा जनन व्यय प्रति यूनिट घटता है इसलिए जिन उपभोक्ताओं की मांग अधिक ऊर्जा यूनिटों की होती है उन्हें विद्युत सस्ती दर पर दी जाती हैं जबकि जिनकी ऊर्जा खपत कम होती है उन्हें विद्युत ऊर्जा अधिक दर पर दी जाती है। इस टैरिफ में व्यय ऊर्जा के ब्लॉक बना लिए जाते हैं। पहले ब्लॉक के लिए ऊर्जा महंगी दर पर फिर अगले ब्लॉकों में ऊर्जा घटती दरों पर दी जाती है।
उदाहरणार्थ पहली 500 यूनिट पर 1.50 रु प्रति यूनिट की दर से द्वितीय 1000 यूनिट पर 1 रुपए प्रति यूनिट की दर से तथा शेष यूनिट पर 75 पैसे प्रति यूनिट की दर से चार्ज किया जाएगा।
ब्लॉक रेट टैरिफ की हानि (Disadvantage of Block Rate Tariff)
यह टैरिफ उस स्थिति में उपयोगी नहीं है, जहां पर उपभोक्ता की मांग उसकी अधिकतम मांग से अधिक होने की संभावना हो क्योंकि इस स्थिति में सप्लाई कम्पनी को ऊर्जा व्यय के अन्तिम ब्लॉक की रेट घटाने की अपेक्षा बढ़ानी पड़ेगी, ताकि उपभोक्ता अपनी अधिकतम मांग को सीमित रखे और जनरेटिंग प्लांट पर उसकी क्षमता से अधिक लोड आने की संभावना न हो।
5. हॉपकिन्सन डिमाण्ड रेट (Hopkinson Demand Rate)
इस टैरिफ को द्विभाग टैरिफ (Two Part Tariff) भी कहा जाता है। इस टैरिफ को सर्वप्रथम Hopkinson द्वारा बताया गया था। इसे निम्न समीकरण से प्रदर्शित किया जाता है
C = Ax+By
इस प्लान में सम्पूर्ण ऊर्जा व्यय को दो भागों में बांटा जाता है
(i) स्थिर व्यय (Fixed Charge)
(ii) चालू व्यय (Running Charge)
(i) स्थिर व्यय अधिकतम kW मांग पर निर्भर करता है।
(ii) चालू व्यय ऊर्जा उपभोग पर आधारित होता है।
इस टैरिफ को निम्नानुसार प्रदर्शित किया जाता है
Y=Rs(bxkW+cx kWh)
यहां b = अधिकतम मांग पर शुल्क प्रति kW
एवं c = ऊर्जा खपत पर शुल्क प्रति kWh
यह टैरिफ आमतौर पर मध्यम औद्योगिक इकाई वाले उपभोक्ताओं के लिए होता है। घरेलू उपभोक्ताओं के लिए आमतौर पर इसका उपयोग इसलिए नहीं किया जाता क्योंकि उपभोक्ता को स्थिर व्यय सदैव अधिकतम kW पर आधारित देने पड़ेंगे चाहे उसका ऊर्जा व्यय शून्य ही क्यों न हो।
6. डॉहर्ती मांग रेट टैरिफ
इस टैरिफ में कुल ऊर्जा व्यय को तीन भागों में विभक्त किया जाता है।
(i) स्थिर व्यय (Fixed charge)
(ii) अर्द्ध-स्थिर व्यय (Semi-fixed charge)
(iii) अस्थिर व्यय (Variable charge)
इस टैरिफ को निम्नानुसार प्रदर्शित किया जाता है
Y = Rs (a + bx kW + cx kWh)
यहां a = स्थिर शुल्क (Fixed charge)
b =अधिकतम मांग पर शुल्क प्रति kW
C = ऊर्जा खपत पर शुल्क प्रति kWh
C = Ax +By+D
मासिक विद्युत खर्च = ?
मासिक ऊर्जा खर्च = 100kWx 0.5 x 24 = 1200 kWh
स्थिर चार्ज (Fixed charge)=₹600
डिमांड चार्ज (मांग चार्ज) प्रति महीना = 70 x 60 = ₹4200
ऊर्जा चार्ज प्रति महीना = 1200 x 10=₹12000
महीने का विद्युत खर्च = (₹600 + ₹4200 + ₹12000) = ₹16800
7. अधिकतम मांग सूचक (Maximum Demand Indication)
यह टैरिफ हॉपकिन्सन डिमाण्ड रेट या द्विभाग टैरिफं के समान होता है। इनमें केवल इतना अन्तर है कि इसमें उपभोक्ता की अधिकतम मांग को मापने के लिए अधिकतम मांग सूचक (Maximum Demand Indication) लंगाया जाता है और उसके kW मांग व्यय, मापे गये अधिकतम kW मांग के आधार पर निर्धारित किए जाते हैं।
8. शक्ति गुणक टैरिफ (Power Factor Tarifl)
किसी भी प्लांट की दक्षता उसके शक्ति गुणक पर निर्भर करती है। इसलिए प्लांट एवं संयंत्रों की उपयोगिता बढ़ाने के लिए प्लांट को सबसे अधिक किफायती शक्ति गुणक पर चलाना चाहिए। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए न्यून शक्ति गुणक वाले उपभोक्ताओं को ऊर्जा महंगी दर पर देकर दण्डित करना आवश्यक है ताकि शक्ति गुणक उच्च हो।
उपभोक्ता को उच्च शक्ति गुणक पर विद्युत ऊर्जा लेने के लिए निम्नलिखित शक्ति गुणक टैरिफ प्रयोग में लाए जाते हैं
9. राइट डिमाण्ड रेट (Wright Demand Rate)
इस टैरिफ प्रणाली में उपभोक्ता को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाता है कि वह अधिकतम मांग (Maximum Demand) का उपयोग करें। अधिकतम मांग एवं ऊर्जा खपत करने पर दरों को कम किया जाता है। इस प्रणाली के प्रयोग से भार गुणक (Load Factor) में बढ़ोतरी होती है।
10. ऑफ-शिखर टैरिफ (Off Peak Tariff)
किसी भी सप्लाई कम्पनी का यह प्रयत्न होता है कि सभी उपभोक्ताओं के शिखर भार एक साथ न आए बल्कि समरूपता से पूरे दिन (24 घन्टों में) वितरित रहे ताकि जनरेटिंग प्लांट की क्षमता का पूर्ण रूप से उपयोग हो सके। सभी शिखर भारों के एक साथ न आकर समरूपता से अलग-अलग समय में आने पर नानत्व गुणक में वृद्धि होती है जिससे उपभोक्ता को ऊर्जा सस्ती दर पर प्राप्त होती है, परन्तु यदि उपभोक्ता की डिमाण्ड समरूप न होकर दिन में किसी एक समय बहुत अधिक हो जाए तथा किसी अन्य समय बहुत कम हो जाए तो नानत्व गुणक का मान कम हो जाएगा जिसके परिणामस्वरूप ऊर्जा दर अधिक हो जाएंगी।
इस टैरिफ का प्रभावी उपयोग रेफ्रिजरेशन, पम्पिंग तथा हीटिंग कार्यों में हो सकता है।
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