अन्तर्दहन इंजन (I.C.) क्या है? कार्यप्रणाली- Internal Combustion Engine in Hindi

तो दोस्तों  इस आर्टिकल में आप जानेंगे कि अन्तर्दहन इंजन क्या है, IC Engine kya hai, Internal Combustion Engine in Hindi, IC Engine in hindi. इस आर्टिकल में बहुत ही अच्छे तरीके से इन सब के बारे में जानकारी देने वाला हूं| तो चलिए शुरू करते हैं |

अन्तर्दहन इंजन क्या है? I.C. Engine in hindi

IC इंजन एक ऐसा इंजन है जिसमें मुख्य रूप से एक सिलिन्डर होता है। सिलिन्डर को ठण्डा रखने के लिये सिलिन्डर के चारों तरफ बनी जल जेकेट में पानी प्रवाहित होता रहता है। छोटे इंजनों के सिलिन्डरों को ठण्डा रखने के लिये उन पर पंखिकाएँ (fins) बनी होती हैं। सिलिन्डर में एक पिस्टन प्रत्यागामी गति करता है। पिस्टन को गैस अवरोधी बनाने के लिये पिस्टन पर पिस्टन वलय (piston rings) लगी रहती हैं। पिस्टन का सम्बन्ध एक गजन पिन (gudgeon pin) के द्वारा संयोजी दंड के छोटे सिरे से होता है। 

     
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अन्तर्दहन इंजन की परिभाषा (IC Engine Definition in Hindi) :-

सिलिन्डर में कार्यकारी माध्यम के प्रवेश व दग्ध गैसों के निकाय के लिये प्रवेश व निकास छिद्र होते हैं। ये छिद्र क्रमशः प्रवेश वॉल्व व रेचन वॉल्व द्वारा खुलते व बन्द होते हैं। वॉल्वों को खोलने व बन्द करने के लिये वॉल्व यंत्रावली लगी रहती है। सिलिन्डर शीर्ष में लगे वॉल्वों के खुलने व बन्द होने की क्रिया कैम शैफ्ट पर लगे कैम द्वारा ढकेल दंड (push rod) व संदोलक भुजा (rocker arm) को मिली गति के कारण सम्पन्न होती है। कैम शैफ्ट की समयन गियर (timing gear) या चैन द्वारा फ्रैंक शैफ्ट से गति मिलती है। चतुः स्ट्रॉक इंजन में कैम शैफ्ट की चाल बॅक शैफ्ट की चाल की आधी होती है अर्थात् एक पूर्ण चक्र में जब फ्रैंक शैफ्ट दो परिक्रमण करती है तब कैम शैफ्ट एक परिक्रमण करती है।

पेट्रोल इंजन में सिलिन्डर के अन्दर पेट्रोल व वायु के मिश्रण के दहन के लिये स्फुलन उत्पन्न करने के लिये सिलिन्डर शीर्ष पर एक स्फुलिंग प्लग लगा रहता है। यह प्लग सम्पीडन स्ट्रॉक के अन्त में विद्युत स्फुलन उत्पन्न करता है। डीजल इंजन में स्फुलिंग प्लग के स्थान पर एक अन्तःक्षेपित्र (injector) लगा रहता है। यह अन्तःक्षैपित्र सिलिन्डर में उच्च दाब व तापमान तक सम्पीडित वायु में उच्च दाब पर बहुत छोटे-छोटे कणों के रूप में डीजल का अन्तःक्षेपण करता है जिससे ईंधन का तुरन्त दहन प्रारम्भ हो जाता है।

 

अन्तर्दहन इंजन की कार्यप्रणाली (Working Method of IC Engine in Hindi) :-

जब सिलिन्डर में पिस्टन नीचे की तरफ चलता है तब चूषण वॉल्व खुल जाता है तथा पेट्रोल इंजन में वायु व पेट्रोल का मिश्रण तथा डीजल इंजन में केवल वायु सिलिन्डर में प्रवेश करती है। जब पिस्टन नीचे पहुँचने पर वापस विपरीत दिशा में ऊपर की तरफ चलता है उस समय दोनों वॉल्व बन्द रहते हैं जिससे मिश्रण या वायु का सम्पीडन होता है, इस कारण दाब व तापमान दोनों बढ़ जाते हैं। सम्पीडन के अन्त में पेट्रोल इंजन है तो स्फुलिंग प्लग से उत्पन्न स्फुलन के कारण मिश्रण प्रज्ज्वलित हो जाता है, परन्तु यदि डीजल इंजन है तब अन्तः क्षेपित्र से उच्च दाब से डीजल ईंधन सिलिन्डर में प्रवेश करता है तथा सम्पीडन से उत्पन्न उच्च तापमान के कारण ईंधन सिलिन्डर में प्रविष्ट होते ही प्रज्ज्वलित हो जाता है।

इधन के इस प्रकार दहन से प्राप्त गैसों के प्रभाव से पिस्टन बहत बल द्वारा नीचे धकेल दिया जाता है। इस समय गैसा का प्रसरण होता है जिससे कार्य प्राप्त होता है। जब पिस्टन वापस ऊपर की तरफ जाता है तो निकास वॉल्व खुल जाता है तथा रेचक गैस सिलिन्डर से बाहर वायमंडल में निकल जाती है पिस्टन मंडल में निकल जाती है पिस्टन यह कार्य निरन्तर रूप से करता रहता है । पिस्टन की यह प्रत्यागामी गति संयोजी दंड व बैंक की सहायता से घूर्णिक गति में परिवर्तित हो जाती है और क्रैक शैफ्ट लगाकर घूमती रहती है।

 

अन्तर्दहन इंजनों के विभिन्न भाग (Different parts of IC Engine in Hindi)

IC Engine के मुख्य भाग निम्नलिखित हैं

1. सिलिंडर- यह एक बेलानाकार होता है| जिसमे एक पिस्टन प्रत्यगामी गति करता है| यह एक प्राय: धूसर ढलवा लोहे (gray cast iron) के बने होते हैं। छोटे इंजनों के सिलिन्डर ऐलमिनियम मिश्रधातु के बने होते हैं। यह धातु हल्की व ऊष्म की अधिक सुचालक होती है। बह सिलिन्डर इंजनों में सभी सिलिन्डर एक सिलिन्डर ब्लॉक में एक साथ ढाले हुए होते है सिलिन्डर की अन्दर की सतह सही तरीके से ग्राइडिंग तथा हौनिंग द्वारा शीशे की तरह परिष्कृत की जाती है। बड़े सिलिन्डरों के अन्दर अलग से लाइनर लगाये जाते हैं जो कि घिसने पर बदले जा सकते हैं। वायुशीतित इंजनों में सिलिन्डर पर पंखिकाएँ होती है तथा जलशीतित इंजनों के सिलिन्डर में शीतल जल प्रवाहित होने के लिये जल जैकेट बनी होती है।

सिलिन्डर ब्लॉक के ऊपरी भाग पर सिलिन्डर शीर्ष कसा रहता है। सिलिन्डर शीर्ष में दहन कक्ष बना होता है। क्षरण को रोकने के लिये सिलिन्डर शीर्ष व सिलिन्डर ब्लॉक के मध्य शीर्ष गैसकेट लगाई जाती है। शीतन के लिये सिलिन्डर शीर्ष पर भी पखिकाएँ या जल जैकेट बने होते है। यह शीर्ष भी धूसर ढलवा लोहे या ऐलमिनियम मिश्रधात काही सिलिन्डर शीर्ष में वॉल्व, स्फुलिंग प्लग या अन्तः क्षेपित्र लगे रहते हैं।

2.पिस्टन- पिस्टन इंजन का एक महत्वपूर्ण भाग होता है। यह ईंधन की रासायनिक ऊर्जा को यांत्रिक कार्य में परिवर्तित करता है। पिस्टन सिलिन्डर में प्रत्यागामी गति करता है। पिस्टन प्रायः ढलवाँ लोहे या ऐलुमिनियम मिश्रधातु के बने होते हैं। पिस्टन के विभिन्न भाग चित्र 11.3 में दिखाये गये हैं। पिस्टन का ऊपरी भाग शीर्ष (head) कहलाता है। पिस्टन की परिधि के ऊपरी भाग पर वलय खाँचे कटे हाते हैं। दो खाँचों के मध्य का भाग लैंड (land) कहलाता है। अन्तिम खाँचे से नीचे का भाग स्कर्ट (skirt) कहलाता है। पिस्टन पिन को रोके रखने के लिये स्कर्ट में आमने-सामने की तरफ दो बॉस (boss) बने होते हैं।

इस प्रकार पिस्टन वलयों के निम्न कार्य होते हैं

  1. ये पिस्टन और सिलिन्डर के बीच दाब सील (pressure seal) बनाती है जिससे दहन कक्ष की उच्च दाब वाली गैसें क्रैक केस में नहीं जा पाती हैं।
  2. पिस्टन शीर्ष से सिलिन्डर की दीवार में ऊष्मा बहने के लिये रास्ता बनाती हैं।
  3. स्नेहक तेल के बहाव को नियंत्रित करती है। इसे दहन कक्ष में जाने से रोकती है।

3. संयोजी दंड (Connecting Rod)- संयोजी दंड पिस्टन और फ्रैंक शैफ्ट को जोड़ती है। चित्र 11.4 में एक साधारण प्रकार की संयोजी दंड दिखाई गई है। इसका छोटा सिरा गजन पिन द्वारा पिस्टन के साथ तथा बड़ा सिरा फेंक पिन से जुड़ा रहता है। संयोजी दंड का कार्य पिस्टन की प्रत्यागामी गति को फ्रैंक शैफ्ट की घूर्णिक गति में परिवर्तित करना होता है। संयोजी दंड [-काट की होती है और यह कुट्टित इस्पात (forged steel) और निकल इस्पात की बनी होती है। यह अवपात ढलाई (drop forging) विधि से बनाई जाती है।

संयोजी दंड का बड़ा सिरा दो भागों में विभक्त होता है जिससे यह फ्रैंक पिन पर आसानी से बोल्टों द्वारा कसा जा सकता है। बड़े सिरे में एक बेयरिंग लगी रहती है जो कि निम्न कार्बन इस्पात की बनी होती है तथा उस पर ताँबा-सीसा, ताँबा-रांगा. रांगा-एन्टीमनी-ताँबा आदि का बना अस्तर (lining) लगा रहता है।

4.बँक शैफ्ट–पिस्टन की प्रत्यागामी गति बॅक शैफ्ट की घूणाग है। आख (solid eve) की तरह होता है। और उसमें फोस्फर-ब्रोज की बुश लगी रहती सका एक पेच से कसा जा सकता है। यह छोटा सिरा पिस्टन से एक पिस्टन पिन धकतर खोखली होती है। बॅक शैफ्ट व फ्रैंक पिन के केन्द्र का दूरा क्रक प (crank throw) कहलाता है। यह पिस्टन स्ट्रॉक का आधा होता है। बॅक केस के पिंड में मुख्य बेयरिंग होते हैं, जिनमें क्रैक शैफ्ट आलंबित (supported) रहती है। बॅक शैफ्ट के सिरे जो इन मुख्य बेयरिंगों में घूमते रहते हैं जरनल कहलाते हैं। मुख्य बेयरिंगों की संख्या सिलिन्डरों की संख्या तथा इंजन के अभिकल्प पर निर्भर करती है। अधिक मुख्य बेयरिंग होने पर फ्रैंक शैफ्ट अच्छी तरह से आलम्बित रहती है जिससे कम्पन कम होते हैं। बॅक शैफ्ट के आगे के सिरे पर हत्थे (hand lever) के लिये बड़ा नट, पंखा पट्टा पुली (fan belt pully) तथा कम्पन डैम्पन (vibrating damper) लगे रहते हैं तथा पिळले सिरे पर गतिपालक पहिया लगा होता है।

5. केम शेफ्ट- केम शैफ्ट का कार्य वॉल्वों को खोलना व बन्द करना होता है। कम शैफ्ट पर कई कमला है। प्रत्येक सिलिन्डर के लिये दो-दो कैम होते हैं, एक प्रवेश वॉल्व के लिये तथा दूसरा रेचक वॉल्व के लिये । इसके अतिरिक्त धन पम्प को चलाने के लिये एक उत्केन्द्रक (eccentric) तथा वितरक को चलाने के लिये एक गियर लगा रहता है। boss) कैम शैफ्ट को गति फ्रैंक शैफ्ट से मिलती है। इन दोनों का सम्बन्ध समयन गियर या समयन चेन द्वारा रहता है। कैम शैफ्ट के गियर दाँतों की संख्या क्रैक शैफ्ट के गियर के दाँतों की संख्या से दुगुने होते हैं। इस प्रकार जब कैम शैफ्ट एक परिक्रमण पूरा करता है तथा बैक शैफ्ट दो परिक्रमण पूर्ण कर लेता है और इतने समय में दोनों वॉल्व एक-एक बार खुलते व बन्द होते हैं।

6.वॉल्व- वॉल्व वह युक्ति होती है जो किसी पथ को खोलता और बन्द करता है। चतः स्टॉक इंजन में प्रत्येक पोसॉल्व चगे होते हैं—प्रवेश वॉल्व तथा रेचन वॉल्व। प्रवेश वॉल्व से वायु या वायु-पेट्रोल का मिश्रण सिलिन्डर में सिलिन्डर से बाहर निकलती है। जब वॉल्व बन्द हो तब ये वॉल्व अपने आसन प्राण होगा। अतः वॉल्व की सतह तथा वॉल्व आसन 30° या 45° कोण पर पर सही बैठने चाहियें अन्यथा भरण का क्षरण होगा। अत: वॉल्व की सतह तशा दम्पात का तथा रेचन वॉल्व प्रायः सिलिकोन इस्पात का बनाया जाता है। सलामीदार होती है। प्रवेश वॉल्व निकल क्रोम इस्पात का तथा रेचन वॉल्व पाया गाली दाग वॉल्वों को खोला व बन्न किया जाता है।


आज आपने क्या सीखा :-

अब आप जान गए होंगे कि IC इंजन क्या है, IC इंजन की परिभाषा, IC इंजन की कार्यप्रणाली, IC इंजनों के विभिन्न भाग,  IC Engine kya hai, Internal Combustion Engine in Hindi,IC Engine in hindi,IC Engine Definition in Hindi,Working Method of IC Engine in Hindi,Different parts of IC Engine in Hindi, Internal Combustion Engine kya hai, Internal Combustion Engine  Definition in Hindi,Working of Internal Combustion Engine in hindi. इन सभी सवालों का जवाब आपको अच्छी तरह से मिल गया होगा|

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