नमस्कार दोस्तों आज के इस पोस्ट में आप जानेंगे कि भूमिगत (underground) केबल को बिछाने की विधियां (Methods for laying underground cables in hindi), different methods of laying underground cables के बारे में जानने वाले हैं अगर आप भी यह जानना चाहते हो तो इस आर्टिकल को पूरा पढ़ते रहिए
भूमिगत (underground) केबल को बिछाने की विधियां
भूमिगत केबल नेटवर्क की रिलायबिलिटी किसी केबल के सही प्रकार से बिछाने तथा केबल सिरों से ज्वाइंट, ब्रान्च कनेक्टर की फिटिंग पर निर्भर करती है। केबल बिछाने के मुख्यतया तीन प्रकार होते हैं
- डायरेक्ट लेइंग (Direct laying)
- ड्रॉ-इन-पद्धति (Draw in system)
- सॉलिड पद्धति (Solid system)
1. डायरेक्ट लेइंग (Direct Laying) विधि- यह तरीका सही, सस्ता व सुलभ है। इसमें 1.5 मीटर गहरा ट्रेंच (trench) तथा 45cm चौड़ा dug होता है। यह ट्रेंच साफ मिट्टी से ढका होता है तथा केबल इस सेण्ड बैड के ऊपर ढकी होती है। यह सेण्ड बैड भूमिगत नमी को रोकता है तथा केबल को decay होने से रोकता है। जब केबल ट्रेंच में डाल दी जाती है तो यह पुनः 10cm मोटाई की सेण्ड लेयर से ढकी होती है। इसके पश्चात् ट्रेंच को ईंटों तथा अन्य भारी पदार्थों से दबा दिया जाता है।
यदि एक केबल से ज्यादा केबल ट्रेंच में डाली जाती है केबलों के बीच 30cm की दूरी रखी जाती है जिससे Mutual heating को रोका जाता है।
लाभ (Advantages)
(i)यह तरीका सीधा तथा सस्ता है।
(ii)इस तरीके से केबल में उत्पन्न heating को सही तरीके से dissipate कर देते हैं।
(iii) क्योंकि इस तरीके में केबल अदृश्य तथा बाहरी प्रभावों से मुक्त होने के कारण साफ तथा सुरक्षित होता है।
हानियां (Disadvantages)
(i)इसमें मेन्टीनेंस दर उच्च होती है।
(ii)फॉल्ट का सामान्यीकरण मुश्किल होता है।
(iii) भीड़-भाड़ युक्त क्षेत्रों में यह तरीका प्रयुक्त नहीं होता है।
(iv) केबल में परिवर्तन कठिन होता है।
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2. ड्रॉ-इन-पद्धति विधि (Draw in system)- इस तंत्र में ग्लेज स्टोन कास्ट, लौह, कंक्रीट की परत केबल पथानुसार बिछाई जाती है पश्चात् केबल को मेन होल में डाल दिया जाता है। नीचे चित्र में पथ duct line दर्शाई गई है। जिनमें तीन duct प्रेषण लाइन तथा एक duct रिले सुरक्षी लाइन में प्रयुक्त होता है। इसके अतिरिक्त मेन होल्स के बीच दूरी कम होनी चाहिए जिससे केबल को खींचने में आसानी रहे।
लाभ (Advantages)
(i)इस तरीके में केबल की रिपेयर, परिवर्तन तथा अतिरिक्त केबल जोड़ने के लिए भूमि को बिछाने की आवश्यकता नहीं होती।
(ii) इसमें केबल आर्मेरिंग की आवश्यकता नहीं होती है जिससे जोड़ आसान हो जाते हैं तथा मेन्टीनेन्स दर भी कम हो जाती है।
(iii) इसमें मजबूत मैकेनिकल सुरक्षा होने के कारण फॉल्ट की संभावना कम होती है।
हानियां (Disadvantages)
(i) प्रारंभिक दर बहुत अधिक होती है।
(ii)धारा वहन क्षमता कम हो जाती है क्योंकि केबल पास-पास समूह में होती है।
यह तरीका सामान्यतः शॉर्ट लेन्थ केबल रूट जैसे-वर्कशॉप, रोड क्रॉसिंग आदि में प्रयुक्त होता है।
3. सॉलिड पद्धति विधि (Solid System)- इस पद्धति में केबल खुले पाइपों में डाली जाती है। थ्रोटिंग कास्ट लौह, स्टोन वेयर या लकड़ी की बनी होती है। केबल की स्थिति फिक्स करने के बाद थ्रोटिंग को बिटुमनी से भरकर ढक दिया जाता है। इस प्रकार की केबल समतल स्थानों पर प्रयुक्त होती है।
लाभ (Advantages)
(i)न्यूनतम शक्तिक्षय
(ii) भरोसेमंद तंत्र
(iii)इसमें रखरखाव की आवश्यकता न्यूनतम होती है
(iv) यह तंत्र वातावरणीय परिवर्तन से कम प्रभावित होता है।
(v) प्रभावी जीवनकाल अधिकतम होता है।
(vi) इनकी यांत्रिक सामर्थ्य अधिकतम होती है।
हानियां (Disadvantages)
(i)यह अधिक खर्चीली होती है।
(ii) इसके लिए अनुभवी श्रमिक तथा आवश्यक वातावरणीय परिस्थिति होनी चाहिए।
(iii)हीट dissipation कम होने के कारण इस केबल की धारा वाहक क्षमता भी कम हो जाती है।
आज आपने क्या सीखा :-
हेलो दोस्तों आज इस पोस्ट में हमने आपको बताया कि भूमिगत (underground) केबल को बिछाने की विधियां (Methods for laying underground cables in hindi)