आज के इस आर्टिकल में आप जानेंगे कि डीसी/दिष्टधारा मशीन क्या होती है? और डीसी मशीन की संरचना और मुख्य भाग का वर्णन. इस आर्टिकल में बहुत ही अच्छे तरीके से इन सब के बारे में जानकारी देने वाला हूं| तो चलिए शुरू करते हैं
डीसी मशीन क्या होती है (D.C.Machine in hindi)
दिष्टधारा जनित्र व दिष्ट धारा मोटर की संरचना एक जैसी होती है। इसी कारण हम मशीन को जनित्र की तरह काम ले सकते हैं।
संरचना के दृष्टिकोण से देखा जाए तो दिष्ट धारा मोटर व दिष्ट धारा जनित्र में कोई अन्तर नहीं होता है। एक ही दिष्टधारा मशीन को मोटर तथा जनित्र दोनों प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है। यदि मशीन को विद्युत प्रदाय से संयोजित किया जाता है तो मशीन मोटर की तरह कार्य करके। यान्त्रिक बल उत्पन्न करेगी और यदि उसी मशीन को प्रथम चालक के यान्त्रिक बल से चलाया जाए तो वह जनित्र की तरह कार्य करके विद्युत शक्ति उत्पन्न करेगी।
अतः दिष्ट धारा मोटर विद्युत ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करती है।
एक ही मशीन से मोटर और जनित्र दोनों का कार्य किया जा सकता है परन्तु मोटर स्थूल रूप से (roughly) प्रयोग में लाने के लिए पूर्णतया या अपूर्णतया बन्द संरचना की होती है, जबकि जनित्र शीतलन (cooling) के लिए खुली संरचना का बनाया जाता है।
दिष्ट धारा मशीन में क्षेत्र कुण्डलियां तो स्टेटर पर होती हैं| परन्तु दिष्ट धारा मशीन में दो ध्रुव के लिए अलग से सरंचना हो जाती है।
डीसी मशीन की संरचना
डीसी मशीन के मुख्य भाग निम्नलिखित है
(1) क्षेत्र चुम्बक : ध्रुव क्रोड, शू व क्षेत्र कुण्डली (Field magnet : pole core, pole shoe and field winding)
(2)योक (Yoke), (3) आर्मेचर क्रोड (Armature core)
(4) आर्मेचर कुण्डली (Armature winding)
(5) दिक्परिवर्तक (Commutator)
(6) बियरिंग (Bearing)
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दिष्ट धारा मशीन के भागों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है
(1) क्षेत्र चुम्बक (Field magnet)– क्षेत्र चुम्बक के तीन भाग होते हैं, वे निम्न प्रकार से हैं
(i) ध्रुव क्रोड
( ii)ध्रुव शू
(iii) क्षेत्र कुण्डली
ध्रुव क्रोड को लोहे व पटलित इस्पात (either soft steel laminated) से बनाया जाता है परन्तु बड़ी मशीनों के लिए ध्रुव क्रोड व ध्रुव शू दोनों ही प्रटलित इस्पात से बनाए जाते हैं। पटलित धुव शू का आकार गोल होता है व आर्मेचर के पास होता है। ध्रुव क्रोड व धुव शू का पटलित भाग उस सतह पर होता है जहां पर आर्मेचर घूमता है। धूव शू के दो काम होते हैं।
(a) चुम्बकीय कुण्डलियों को आधार प्रदान करना
(b) चुम्बकीय परिपथ का प्रतिष्टम्भ कम करना व शू का अनुप्रस्थ क्षेत्र अधिक होने के कारण वायु अन्तराल में फ्लक्स को समरूपता से फैलाना
क्षेत्र चुम्बक का ऊपरी भाग जो कि नट बोल्ट की सहायता से योक के साथ कस दिया जाता है। उस क्षेत्र चुम्बक में ध्रुव क्रोड व नीचे का भाग शू कहलाता है। इसके अन्दर ताम्र के विद्युतरोधित (Insulated) तारों से कुण्डली बनाई जाती है। क्षेत्र कुण्डली को बनाने के लिए पहले ध्रुव क्रोड | के आकार का फर्मा बना लिया जाता है। तत्पश्चात् फर्मे की सहायता से क्षेत्र कुण्डलियां बनाकर ध्रुव क्रोड में फंसा दी जाती है।
(2) योक (Yoke)- यह मशीन का बाहरी कवच होता है, जो कि गोल आकार का होता है। योक को ढलवां लोहे (cast iron) अथवा इस्पात (cast steel) व रोल्ड इस्पात (rolled steel) से बनाते हैं। छोटी मशीनों के योक (yoke) को ढलवां लोहे से व बड़ी मशीनों के योक (yoke) को ढलवां (cast) व रोल्ड इस्पात (rolled steel) से बनाते है क्योंकि इससे मशीन का भार कम होता है परन्तु बड़ी मशीनों के योक दो भागों में ढाले जाते हैं और दोनों भागों को नट बोल्ट की सहायता से जोड़ देते हैं। तब यह मशीन के ध्रुव को यान्त्रिक कर उसकी बाहरी क्षति से रक्षा करते हैं। ध्रुव चुम्बकीय फ्लक्स के लिए निम्न प्रतिष्टक (low.reluctance) का पथ प्रदान करता है। ध्रुव क्रोड को योक के साथ जोड़ा जाता है जिस कारण इसे अन्दर से जोड़ना पड़ता
(3) आर्मेचर क्रोड (Armature core)– मशीन का जो भाग घूमता है, उसे आर्मेचर कहते हैं। आर्मेचर को चालक से बनाते हैं। आर्मेचर क्रोड बेलनाकार आकृति का लगभग 6.35 mm (1/4 इंच) मोटी सिलिकन इस्पात (silicon steel) की वृत्ताकर पटलों का बना होता है इसकी परिधि पर चारों और आर्मेचर संवाहक या कुण्डलन (windings) डालने के लिए खांचे (slots) काटे जाते हैं जिसकी वजह से पटलों को वार्निश या ऑक्साइड लेपन करके सूखा दिया जाता है और फिर द्रव दाब मशीन (hydraulicpress machine) की सहायता से इन्हें बेलनाकार आकृति में बना दिया जाता है।
पटलों को पतला बना कर उन पर वार्निश या ऑक्साइड परत चढ़ाने से भंवर धारा पथ का प्रतिरोध बढ़ जाता है फलस्वरूप भंवर धारा हानि कम हो जाती है। बड़ी मशीनों के आर्मेचर क्रोड के अक्ष के समानान्तर वायु छिद्र बना होता है, जो कि आर्मेचर शीतलन में सहायता करता है। आर्मेचर क्रोड मुख्यतया अपनी कुण्डलन को अपने अन्दर स्थापित कर लेती है, जिसकी वजह से आर्मेचर क्रोड अपने चुम्बकीय क्षेत्र में घुमता है, फिर वह इससे गुजरने वाले फ्लक्स को निम्न प्रतिष्टभ का पथ प्रदान कराती है।
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(4) आर्मेचर कुण्डलन (Armature winding)– आर्मेचर कुण्डली एनैमल्ड ताम्र तार (enamelled copper wire) की बनी होती है। ये कुण्डली पहले फर्मे पर लपेट ली जाती है तत्पश्चात् इन्हें ताम्र तार से बने हुए आर्मेचर के खांचों (slots) में डाल देते हैं। कुण्डली को आर्मेचर के खांचों में डालने से पहले खांचों में एम्पायर क्लाथ (empirecloth) ताम्र तार की बनी तथा लेदरॉइड पेपर (leatheroid paper) को लगा दिया जाता है, ताकि कुण्डलन के विद्युतरोधन (insulation) को कोई हानि न पहुंचे। कुण्डलन को डालने के पश्चात् खांचों की लकड़ी को फन्नियों (wedges) से बन्द कर दिया जाता है और कुण्डलन के सिरों (ends) को दिकपरिवर्तक (commutator) से जोड़ देते हैं।
(5) दिकपरिवर्तक (Commutator)– यह दिष्ट धारा मशीन का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है जो प्रत्यावर्ती धारा आर्मेचर में उत्पन्न होती है। उससे हम दिकपरिवर्तक की सहायता से प्रत्यावर्ती धारा से दिष्ट धारा में बदलते हैं। यह उच्च चालकता (high conductivity) कार्षित कठोर (hard drawn) ताम खण्डों को बना हुआ बेलनाकार आकृति का होता है।
ये ताम्र खण्ड परस्पर अभ्रक (mica) द्वारा विद्युतरोधित (insulated) होते हैं और ये ‘V’ आकार के बने होते हैं ताकि अपकेन्द्री बल (centrifugal force) के कारण निकल कर वो उड़ ना सकें। इन ‘V’आकार के खांचों को मेकेनाइट (mecanite) की वलय द्वारा विद्युतरोधी बनाते हैं। संवाहको को पकड़ने के लिऐ ताम्र के खण्डों के सिरों पर लग्ज (lugs) लगे होते हैं।
(6) बुश (Brush)– ब्रुश कार्बन और आयताकार आकार में ताम्र की बनी होती है। इन बुशों को होल्डरों में लगाते हैं, जिसे ब्रुश होल्डर कहते हैं। ये बुश, स्टैण्ड पर ब्रुश योक की तरह लगते हैं। ब्रुश गियर में ब्रुश योक, बुश होल्डर व बुश लगे होते हैं। ब्रुश का काम धारा को दिक्परिवर्तक से एकत्रित करना होता है और उसे हम बाहरी परिपथ पर देते हैं, जिससे यह ब्रुश दिक्परिवर्तक को उस भाग पर घुमाता है जहां पर बुश लगी होती है। ब्रुश की जो भी जगह होती है उसे हम सेगमेन्ट की सहायता से एक ब्रुश से दूसरी ब्रुश पर लगाते है। इस कारण जो भी कुण्डलन घुमता है, उससे फ्लक्स की लाइन से 90° पर घुमाव होता है। इस कारण विद्युत स्फूलिंग (Electric spark) बहुत अधिक हो जाती है और बड़ी मशीनों से स्फूलिंग दिक्परिवर्तक को काफी हानि पहुंच सकती है।
अतः बड़ी मशीनों में कार्बन ब्रुशों का उपयोग किया जाता है। कार्बन का प्रतिरोध ताम्र की अपेक्षा अधिक होता है जिससे स्फूलिंग नहीं हो सकती है और साथ ही कार्बन ब्रुश दिक्परिवर्तक के लिए स्नेहक (lubricant) का कार्य करती है।
ब्रुश साधारणतया बक्साकार (Box type) होल्डर में लगा दी जाती है जिसमें दिक्परिवर्तक के साथ सही सम्पर्क बनाए रखने के लिए स्प्रिंग दाब डाला जाता है और बुश का सम्बन्ध पिगटेल (pigtail) संयोजन द्वारा बाह्य परिपथ के होल्डर से कर दिया जाता है।
(7) बियरिंग (Bearing)-आर्मेचर शाफ्ट को देने के लिए या तो बियरिंग बॉल या बियरिंग काम आते हैं। बियरिंग को चलाने के लिए पूरा स्नेहक लगाया जाता है। बियरिंग प्रायः गन मेटल (Gun metal) व बैबिट मैटल (babitmetal) से बनाई जाती है।
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अब आपने अच्छी तरीके से जान लिया होगा कि डीसी मशीन क्या होती है और डीसी मशीन की संरचना/structure और डीसी मशीन के मुख्य भागों का वर्णन(dc machine ke part) इन सब के बारे में आपको अच्छी तरीके से जानकारी मिल गई होगी
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Sir mai ravi shankar giri DC mashin me jo pol shu hota hai usme kyo bhavra dhara ki hani hoti hai karan kya hai ese darsha ye 7607007975 link whatsapp kare
A DC machine, essential for various industrial applications, excels in providing precise speed control and high starting torque. Its versatility and reliable performance make it invaluable in both motors and generators.