हेलो दोस्तों, इस आर्टिकल में आपको बताने वाला हूं कि प्रतिरोध भट्टी की बनावट व कार्यप्रणाली – Construction and Working of Resistance Oven & Furnace in hindi, प्रतिरोध भट्टी क्या है – What is Resistance Oven & Furnace in hindi| तो चलिए शुरू करते हैं
प्रतिरोध भट्टी क्या है – What is Resistance Oven & Furnace in hindi
Construction and Working of Resistance Oven in hindi: प्रतिरोध ऑवन में एक तापन कक्ष (Heating chamber) होता है जिसके अन्दर प्रतिरोध तापक तत्व स्थापित होता है। सामान्यता तापक तत्व तार या पट्टी (Strips) के रूप में होते हैं परन्तु कुछ प्रतिरोध भट्टियों में तापक तत्व इलेक्ट्रॉड के रूप में भी होते हैं।
प्रतिरोध भट्टी की बनावट व कार्यप्रणाली
प्रतिरोध आवों को धात्विक कक्ष के अन्दर अग्नि सह ईंटों या तापरोधी कम्बल (Heat insulating blanket) आदि ताप रोधी पदार्थ लगा कर बनाया जाता है। आवे का प्रारूप एवं आकार आवश्यकतानुसार बनाया जाता है और प्रतिरोध तापक तत्व आवे की छतः दीवारों या तले में या सभी पर जैसी आवयश्कता हो, लगाए जाते हैं। आवा बनाते समय यह अनिवार्य है कि उसमें ताप क्षय न्यूनतम हो और गर्म की जाने वाली वस्तु को समरूप ताप प्राप्त हो।
ऑवन में 1000°C तक तापमान प्राप्त करने के लिए तापक तल निकल, क्रोमियम और लोहे की मिश्रधातु का तार या पट्टी के रूप में प्रयोग करते हैं परन्तु 3000°C तक उच्च तापमान प्राप्त करने के लिए ग्रेफाइट के विशेष तापक तत्व प्रयोग किये जाते हैं।
850°C तक तापमान प्राप्त करने के लिए 65%Ni, 15%Crऔर 20% Fe मिश्रधातु तापक तत्व उपयुक्त है और 1000°C तक तापमान प्राप्त करने के लिए 78.5 % Ni, 20% Cr और 1.5 Si(80-20 नाइक्रोम V) उपयुक्त है। 1000°C तक तापक्रम के लिए 67% Fe,25%Cr और 5%AI(Fe-Cr-AI) मिश्रधातु) को भी प्रयोग किया जा सकता है परन्तु इनकी आयु नाइक्रोम V की अपेक्षा काफी कम होती है। इनका समय के साथ प्रतिरोध बढ़ता है और उच्च तापक्रम पर धात्विक परिवर्तन के कारण इनमें भंगुरता आती है। इनके खराब होने पर इन्हें ठीक करना भी बहुत कठिन है। सिलिकन कारबाइड को 1500°C तक और मोलिब्डीनम डाईसिलिसाइड को 1700°C तक प्रयोग किया जा सकता है। ग्रेफाइट को निष्क्रय गैस में 2200°C तक तथा विशेष ग्रेफाइट प्रतिरोधक तत्वों को 3000°C तक भी प्रयोग किया जा सकता है। ग्रेफाइट वस्तुतः पिघलता नहीं है परन्तु यह 3650°C से 3695°C पर वाष्प में बदल जाता है।
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तापन के उद्देश्यों के लिए दो प्रकार के प्रतिरोध ओवनों का प्रयोग किया जाता है-
- वायु परिसंचार ओवन (Air circulation oven)
- दीप्त तापानुशीतन ओवन (Bright annealing oven)
1. वायु परिसंचार ओवन- इस प्रकार के ओवन को संवहन प्रकार का ओवन भी कहते हैं। सामान्य प्रतिरोध ओवन जिनमें कि तापान्तरण, विकिरण द्वारा होता है परंतु चार्ज के विभिन्न भाग समान रूप से गर्म नहीं हो पाते। अतः जहां चार्ज के विभिन्न भागों का समरूप तापमान वांछित हो व ओवनों में 600°C से अधिक तापमान की आवश्यकता नहीं हो तो वहां वायु परिसंचार ओवन उपयुक्त रहते हैं। इन ओवनों में वायु को तप्त तापक तत्वों पर प्रवाहित करके गर्म किया जाता है और फिर इस गर्म हवा को चार्ज के ऊपर परिसंचरित करके उसे समरूप ताप प्रदान किया जाता है। चार्ज को अधिक समरूप ताप प्रदान करने के लिए वायु-परिसंचार की दिशा को विपरीत कर दिया जाता है। वायु परिसंचार के लिए पंखों या ब्लोअरों का प्रयोग किया जाता है। वायु परिसंचार ओवनों का प्रयोग इस्पात के कठोरीकरण, खिंचाई, एल्युमिनियम परत आदि के लिए किया जाता है।
2. दीप्त तापानुशीतन ओवन- अनीलीकरण या तापानुशीतन की सामान्य प्रक्रिया में जॉब पर ऑक्साइड परत, पपड़ी के रूप में बन जाती है और जॉब की चमकदार सतह प्राप्त करने के लिए उसे हटाना अनिवार्य है। यदि तापानुशीतन प्रक्रिया, O.CO, व नमी युक्त वातावरण में की जाए तो जॉब पर अनीलीकरण के समय बनने वाली ऑक्साइड पपड़ी को रोका जा सकता है। पपड़ी रहित जॉब प्राप्त करने के लिए अनीलीकरण की प्रक्रिया एक सील किए गए ओवन में करते हैं जिसमें गर्म हवा को बाहर निकालने के लिए एक तरफा वाल्व होता है जो कि गर्म हवा को ओवन से निकलने तो देता है परंतु ओवन के ठंडा होने पर बाहर से हवा को ओवन के अंदर घुसने नहीं देता और अनुशीतित जॉब की सतह बिना ऑक्साइड परत के चमकदार प्राप्त होती है।
आज आपने क्या सीखा :-
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