अर्थिंग की आवश्यकता क्यों होती है? (Need of Earthing in hindi)

हेलो दोस्तों, आज में आपको बताने वाला हूं कि अर्थिंग की आवश्यकता क्यों होती है? (Need of Earthing in hindi) :अगर आप भी है जानना चाहते हो तो इस आर्टिकल को पूरा पढ़ते रहिए

अर्थिंग की आवश्यकता (Need of Earthing)

विद्युत के झटकों से या खतरों से सुरक्षा हेतु अर्थिंग की आवश्यकता पड़ती है। यदि लौह आवरण चढ़ा विद्युत उपकरण, जिसमें धारा का क्षरण हो रहा हो, के सम्पर्क में कोई तार आ जाए तो, उस आवरण में स्थित विद्युत से उसके सम्पर्क में आने वाले मनुष्य व जीव-जन्तु उस उपकरण से चिपक सकते हैं या मूर्छित हो सकते हैं अथवा मर सकते हैं। यदि अर्थिंग से उपकरण जुड़ा होगा तो धारा शीघ्रता से पृथ्वी में गुजरने की कोशिश करेगी और पीछे की वायरिंग या लाइन ओवरलोड हो जाएगी तो अत्यधिक धारा बहेगी व M.C.B. ट्रिप हो जाएगी या फ्यूज उड़ जाएगा। इस तरीके की वायरिंग उपकरणों की सुरक्षा के साथ मानव क्षति की भी सुरक्षा करती है। इसके अतिरिक्त अर्थिंग का कार्य न्यूट्रल तार को भू-विभव पर बनाए रखने का भी होता है। 

     
                    WhatsApp Group                             Join Now            
   
                    Telegram Group                             Join Now            

अर्थिंग की आवश्यकता को निचे दिए गए पॉइंट द्वारा समझ सकते है

1.जीवन का बचाव (Safety of human life)- किसी विद्युत उपकरण में धारा प्रवाहित रहती है तो किसी कारणवश यह धारा उस विद्युत उपकरण के सम्पूर्ण बॉडी में फैल जाता है इस हालत में अगर कोई व्यक्ति इस बॉडी से स्पर्श हो तो उस व्यक्ति को करंट लग सकता है और उसकी जान जा सकती है यदि हम इससे अर्थिंग का उपयोग करें तो इससे उस व्यक्ति को करंट नहीं लगेगा क्योंकि यह करने से उस व्यक्ति को कोई हानि नहीं हो पाती है

2.लाइन के वोल्टेज को स्थिर रखने के लिए ‘अर्थिंग’ का उपयोग किया जाता है|

3.बिल्डिंगों को आसमानी विद्युत से बचाने के लिए Lightening arrester प्रयोग किए जाते हैं जिससे आसमानी विद्युत अर्थ हो जाती है।

4.ओवरहैड लाइन से चलने वाली वैद्युतिक मशीनों  को आसमानी विद्युत से बचाने के लिए ‘अर्थिंग’ किया जाता है। 

 

वैद्युत संस्थानों को भू-सम्पर्कित करने की आवश्यकता (Need for Earthing of Electrical Installation)

भारतीय मानक संस्थापन की विशिष्ट संख्या IS : 3043 – 1966 तथा भारतीय विद्युत नियम, 1956 के अनुसार वैद्युत संस्थापन में धातु आवरण (metal sheathing), वायरिंग में सम्पूर्ण कन्ड्यूट, विद्युत के साधनों, उपसाधनों व मशीनों के धातुओं के हिस्से तथा अन्य बिजली के ऐसे उपकरण जिनके बाहरी हिस्से धातु के हों, अच्छे भू-सम्पर्कन (earthing) से जुड़े होने चाहिए, जिससे कभी विद्युतरोधन (insulation) के होने पर मशीनों के धातुओं के भागों पर खतरनाक आवेश (वोल्टता) न आ सके। इससे बिजली का भारी झटका तो लग ही सकता है, साथ ही साथ इस प्रकार अपूर्ण भू-सम्पर्कन से वायरिंग या मशीनों में आग भी लग सकती है, क्योंकि इस समय भू-क्षरण धारा (earth leakage current) अनचाहे पथ से गुजरती है। यदि उपकरणों के धातु हिस्से अच्छे भू-सम्पर्कित हैं तो आवेश (वोल्टता) तुरन्त भू को स्थानान्तरित हो जाएगा क्योंकि धातु भाग सीधे ही जीवित तार के सम्पर्क में आ जाएगा तथा इस प्रकार परिपथ टूट जाएगा। जैसे ही भू में आवेश का विसर्जन (discharge) होता है, धारा पथ की प्रतिबाधा कम हो जाती है तथा भू की ओर अधिक मात्रा में धारा प्रवाहित होती है, जिस क्षण धारा सीमित मान से बढ़ती है, परिपथ में लगा फ्यूज पिघल जाता है तथा उपकरण की सप्लाई ऑफ हो जाती है। इस प्रकार विद्युत उपकरणों तथा उपयन्त्रों के धातु भागों का भू-सम्पर्कन करने से उनकी तथा काम करने वालों की सुरक्षा हो जाती है।

इसलिए विद्युत साधनों, मशीनों के धातुओं के हिस्से, किसी भू-सम्पर्कन तार (earthing conductor) के साथ पूर्ण रूप से अच्छी तरह जुड़े होने चाहिए। कन्ड्यूट वायरिंग (conduit wiring) में कन्ड्यूट के साथ भू-तार चलाना चाहिए, भू-तार का प्रतिरोध जहां से भू-सम्पर्कन किया गया है, से लेकर जिस मशीन या साधन को भू-सम्पर्कन किया गया है, 1 ओह्म (ohm) से अधिक नहीं होना चाहिए, जबकि इससे कम होना अच्छा है, लेकिन जो यन्त्र या मशीन अधिक एम्पियर का लोड लेती है, वहां पर भू प्रतिरोध 0 (शून्य) ओह्म (ohm) होना चाहिए।

अब आप जान गए होंगे कि अर्थिंग की आवश्यकता क्यों होती है? (Need of Earthing in hindi)|

1 thought on “अर्थिंग की आवश्यकता क्यों होती है? (Need of Earthing in hindi)”

Leave a Comment