Boiler क्या है : इसके सिद्धांत, गुण और वर्गीकरण

तो दोस्तों  इस आर्टिकल में आप जानेंगे कि बॉयलर क्या है, बॉयलर की परिभाषा, बॉयलर का कार्य सिद्धांत, What is a Boiler in Hindi, What is boiler in hindi, definition of boiler in hindi. इस आर्टिकल में बहुत ही अच्छे तरीके से इन सब के बारे में जानकारी देने वाला हूं| तो चलिए शुरू करते हैं

बॉयलर क्या है

     
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बॉयलर क्या है? (बॉयलर की परिभाषा)

बॉयलर एक ऐसा बन्द पात्र होता है जिसमें ईंधन के दहन से प्राप्त ऊष्मा को जल को प्रदान कर चाहे गये दाब और तापमान पर इच्छित गुण वाली भाप बनाई जाती है। इस प्रकार बॉयलर में ईधन की रासायनिक ऊर्जा को ऊष्मा ऊर्जा में बात कर जल से वायुमडल से अधिक दाब पर भाप बनाई जाती है।

इस भाप का उपयोग भाप इजन व भाप दरबार में. बहुत-सी आधागिक सस्थानो में, प्रक्रियाओं (processes) में, तापन संस्थापनों इत्यादि में किया जाता है।

बॉयलर का कार्य सिद्धांत

बॉयलर उसी सिद्धांत पर काम करता है जैसे बंद बर्तन में पानी गर्म किया जाता है और गर्म करने के कारण पानी भाप में बदल जाता है। इस भाप में उच्च दाब गतिज ऊर्जा होती है। बॉयलर में पानी है। भट्ठी से निकलने वाली गर्मी का उपयोग करके पानी को उसके क्वथनांक तक गर्म किया जाता है। पानी को गर्म करने के कारण यह उच्च दाब वाली भाप में परिवर्तित हो जाती है।

उत्पन्न भाप को भाप टर्बाइनों के माध्यम से पारित किया जाता है। जैसे ही उच्च दबाव वाली भाप टरबाइन से टकराती है, यह टरबाइन को घुमाती है। एक जनरेटर टर्बाइन से जुड़ा होता है और जनरेटर भी टर्बाइन के साथ घूमता है और बिजली उत्पन्न करता है।

एक अच्छे बॉयलर के आवश्यक गुण

एक अच्छे बॉयलर में निम्नलिखित आवश्यक गुण होने चाहिये

  1. बॉयलर की संरचना सरल होनी चाहिये। 
  2. बॉयलर के लिये आवश्यक फर्श क्षेत्रफल कम-से-कम होना चाहिये। 
  3. बॉयलर का भार कम होना चाहिये तथा इसका अवस्थापन (setting) भी सरल होना चाहिये। 
  4. इसकी प्रारम्भिक लागत व अधिष्ठापन (installation) व्यय कम होना चाहिये। 
  5. बॉयलर का परिचालन तथा अनुरक्षण व्यय कम होना चाहिये। 
  6. बॉयलर शीघ्र चालू होने वाला होना चाहिये। 
  7. बॉयलर का प्रत्येक भाग बॉयलर परिचालक की पहुँच में होना चाहिये। 
  8. बॉयलर का अभिकल्प इस प्रकार का होना चाहिये कि भारण बढ़ने पर अतिशीघ्र आवश्यकता की पूर्ति हो सके।
  9. इसका कोई भी जोड़ सीधा ज्वाला के ऊपर नहीं होना चाहिये।
  10. बॉयलर इस प्रकार का होना चाहिये कि कम-से-कम ईंधन के दहन से अधिक मात्रा में भाप उत्पन्न हो।
  11. बॉयलर का जीवनकाल सन्तोषजनक होना चाहिये। 
  12. इसमें कहीं भी भाप, वायु या जल का क्षरण (leakage) नहीं होना चाहिये। 
  13. पानी के प्रवाह के लिये उचित जल स्थान व भाप स्थान होना चाहिये।

बॉयलर में प्रयुक्त कुछ मुख्य पद 

  1. कोश: यह एक बेलनाकार कोश होता है जो इस्पात की पत्रकों (plates) को रिवेटिग अथवा वेल्टर बनाया जाता है। इस कोश के सिरों को चपटें, उत्तल अथवा अवतल पत्रकों द्वारा बन्द किया जाता है।
  1. अवस्थापनः यह बॉयलर का वह भाग है जिस पर कोश रखा जाता है। यह प्रायः ईंटों का बना होता है। कुछ बॉयलरों में यही आवश्यक दग्ध गैसों के पथ का कार्य भी करता है। कुछ बॉयलरों में इसकी आवश्यकता

       भी नहीं होती है। 

  1. भट्टी: यह बॉयलर का वह मुख्य भाग है जहाँ पर ईंधन को जलाकर उसकी रासायनिक ऊर्जा को ऊष्मा ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
  2. झंझरी व झंझरी सतहः कोयला व लकड़ी ज्वलित बॉयलरों में यह एक जालीनुमा मंच (plateform) होता है जिस पर ईंधन को जलाया जाता है। द्रव ईंधन के लिये इसकी आवश्यकता नहीं होती है। अधिकतर बॉयलरों में ढलवाँ लोहे की छड़ों को कुछ दूरी पर रखकर झंझरी बनाई जाती है (अन्य प्रकार की झंझरिया भी प्रयोग में आती हैं) दो छड़ों के बीच के स्थान में दहन के लिये आवश्यक वायु ऊपर की तरफ जाती है तथा ईंधन के जलने से उत्पन्न राख नीचे गर्त में गिरती जाती है। कुछ बॉयलरों में गतिशील झंझरी भी काम में लायी जाती है। झंझरी के जिस सतह पर ईंधन जलाया जाता है उसे झंझरी सतह कहते हैं। इस सतह को वर्ग मीटर में व्यक्त किया जाता है।
  3. जल स्थान व भाप स्थानः कोश के जिस आयतन में जल भरा रहता है उस आयतन को जल-स्थान कहते हैं। जहाँ तक जल की सतह होती है उसे जल तल कहते हैं।
  4. तापन क्षेत्रफल: यह बॉयलर का वह क्षेत्रफल होता है जो कि आग व गर्म गैसों के सम्पर्क में रहता है। इस प्रकार यह वह क्षेत्रफल है जो ऊष्मा अवशोषित करता है।
  5. आरोपिकाएँ : ये बॉयलर के वे अंग हैं जो उसके प्रचालन के लिये अत्यन्त ही आवश्यक हैं। ये बॉयलर पर स्थायी तौर पर लगा दिये जाते हैं। सुरक्षात्मक प्रचलन के लिये इनका होना अति आवश्यक हैं।
  6. उपसाधनः  ये बॉयलर के वे अंग हैं जो उसकी कार्यप्रणाली में सहायक होते हैं। इनके बिना बॉयलर कार्य तो कर सकता है परन्तु इनके लगाने से बॉयलर की दक्षता बढ़ जाती है।

Boilers का वर्गीकरण

निम्नलिखित आधारों पर किया जा सकता है-

कोश के अक्ष के आधार पर 

(i)क्षैतिज boiler

(ii) ऊर्ध्वाधर boiler 

यदि boiler के कोश की मुख्य अक्ष क्षैतिज स्थिति में है तो उसे क्षैतिज hailer कहते हैं। जैसे-लंकाशायर boiler, रेल इंजन boiler, बैबकॉक व वि विलकॉक्स boiler | यदि boiler के कोश की मुख्य अक्ष ऊर्ध्वाधर स्थिति में स है तो उसे ऊर्ध्वाधर boiler कहते हैं। जैसे-कॉकरन boiler |

उपयोग के आधार पर 

(i)निश्चल boiler

(ii) सुबाह्य boiler 

निश्चल boiler एक स्थान पर स्थिर रहते हैं। इस प्रकार के boiler | केन्द्रीय तापीय शक्ति उत्पादन संयंत्रों, औद्योगिक संस्थानों में प्रक्रिया संबंधी कार्यों में तथा तापन संस्थापनों आदि में काम में लाए जाते हैं। जैसे-लंकाशायर boiler, कॉकरन boiler, बैबकॉक boiler आदि।

सुबाह्य boiler में किसी न किसी प्रकार की गति अवश्य होती है। इस प्रकार के boiler का प्रयोग रेल इंजनों व मेरिन इंजनों (marine engines) को चलाने में किया जाता है।

दग्ध गैसों के प्रवाह के आधार पर 

(1) Fire tube boiler

(ii) Water tube boiler 

Fire tube boiler में भट्टी की गर्म गैसें tubes में से प्रवाहित होती हैं और water tubes के बाहर चारों तरफ होता है। इनमें एक या एक से अधिक fire tubes हो सकती हैं। जैसे-लंकाशायर boiler, कॉकरन boiler, रेल इंजन boiler आदि।

Water tube boiler में tubes के अंदर जल रहता है तथा नलियों के बाहर चारों ओर गर्म गैसें होती हैं। जैसे-बैबकॉक व विलकॉक्स boiler, स्टर्लिंग boiler व विभिन्न उच्च दाब boiler आदि ।

भट्टी के स्थान के आधार पर

(i) आंतरिक दहन boiler 

(ii) बाह्य दहन boiler

आंतरिक दहन boiler में भट्टी boiler कोश के अंदर होती है। जैसे-लंकाशायर boiler, कॉकरन boiler, रेल इंजन boiler |

बाह्य दहन boiler में भट्टी boiler कोश के बाहर होती है। जैसे-बैबकॉक व विलकोक्स boiler, स्टर्लिंग boiler |

जल परिसंचरण के आधार पर

(i) प्राकृतिक परिसंचरण boiler 

(ii) प्रणोदित परिसंचरण boiler

प्राकृतिक परिसंचरण boilers में जल का परिसंचरण जल द्वारा ऊष्मा प्राप्त करने पर उत्पन्न संवहन धारा (convection current) के कारण होता है। निम्न दाब boilers में जल का परिसंचरण अधिकतर इसी विधि से हाला हा लकाशायर boiler कॉकरन boiler, बैबकॉक व विलकॉक्स आदि इसके उदाहरण हैं।

प्रणोदित परिसंचरण boilers में जल को पम्प द्वारा एक निश्चित दिशा में प्रवाहित किया जाता है। जल के प्रवाह का वेग जितना अधिक होता है. उतनी ही शीघ्रता से जल गर्म होता है। ला-मॉन्ट boiler, Benson boiler, Loffler boiler आदि इसके उदाहरण हैं।

ईंधन के आधार पर

(i) कोयला ज्वलित boiler 

(ii) तेल ज्वलित boiler

(iii) गैस ज्वलित boiler 

(iv) विद्युत ज्वलित boiler

प्रवात के आधार पर

(1) प्राकृतिक प्रवात boiler 

(ii) कृत्रिम प्रवात boiler

प्राकृतिक प्रवात boiler में पानी का प्रवाह अपने आप होता है। इस प्रवात को एक ऊंची चिमनी लगाकर उत्पन्न किया जाता है। कम क्षमता के boiler साधारणतया प्राकृतिक प्रवात वाले होते हैं। जैसे-कॉकरन boiler, लंकाशायर boiler, बैबकॉक boiler, विलकॉक्स boiler आदि।

कृत्रिम प्रवात boiler में हवा के प्रवाह के लिए प्रवात पंखे का प्रयोग किया जाता है। अधिक क्षमता वाले व शक्ति संयंत्रों में उपयोग में आने वाले सभी boiler कृत्रिम प्रवात के अंतर्गत आते हैं।

Steam के दाब के आधार पर

(i) निम्न दाब boiler 

(ii) उच्च दाब boiler

80 bar से कम दाब पर steam उत्पन्न करने वाले boiler निम्न दाब boiler कहलाते हैं। उदाहरण-कॉकरन boiler, लंकाशायर boiler, रेल इंजन boiler व बैबकॉक व विलकॉक्स boiler

80 bar व इससे अधिक दाब पर steam उत्पन्न करने वाले boiler उच्च दाब boiler कहलाते हैं। यह दाब क्रांतिक दाब या इससे अधिक भी हो सकता है। उदाहरण-लॉ-मॉन्ट boiler, Benson boiler, वेलॉक्स boiler |

विशेष गुणों के आधार पर

कुछ boiler कुछ विशेष गुणों को लेकर बनाए जाते हैं। जैसे-इकनली (mono-tube) boiler, rotary boiler, दहन क्रिया boiler आदि।

व्यापारिक नाम के आधार पर 

इसके अंतर्गत व्यापारिक नाम जैसे-लंकाशायर, कॉकरन, बैबकॉक व विलकॉक्स, नेसलर, स्टरलिंग, बेन्सन, ला-मॉन्ट, सल्जर आदि आते हैं।


आज आपने क्या सीखा :-

अब आप जान गए होंगे कि बॉयलर क्या है, बॉयलर की परिभाषा, बॉयलर का कार्य सिद्धांत, बॉयलर के आवश्यक गुण,बॉयलर में प्रयुक्त कुछ मुख्य पद ,Boilers का वर्गीकरण ,What is a Boiler in Hindi, What is boiler in hindi, definition of boiler in hindi, working principle of boiler in hindi, classification of boilers in hindi. इन सभी सवालों का जवाब आपको अच्छी तरह से मिल गया होगा|

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