हेलो दोस्तों, आज में आपको बताने वाला हूं कि प्रतिकर्षण मोटर क्या है?, प्रतिकर्षण मोटर की संरचना, प्रतिकर्षण मोटर के प्रकार, प्रतिकर्षण मोटर का कार्य सिद्धान्त, प्रतिकर्षण मोटर काअभिलक्षण, What is Repulsion Motor?, Structure of Repulsion Motor, Working Principle of Repulsion Motor. :अगर आप भी है जानना चाहते हो तो इस आर्टिकल को पूरा पढ़ते रहिए
प्रतिकर्षण मोटर क्या है?
प्रतिकर्षण मोटर एक पृथक् अस्तित्व वाली मोटर है। इसमें घूमने की दिशा कार्बन ब्रुशों की स्थिति को बदलकर परिवर्तित की जाती है अर्थात इसकी बनावट में आर्मेचर क्षेत्र धुव होते हैं। आर्मेचर लघु पथित किया जाता है तथा लघु पथित कुण्डली को एक कलीय प्रत्यावर्ती धारा द्वारा क्षेत्र ध्रुव में सप्लाई देकर बने चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाए तो आर्मेचर कुण्डली तथा क्षेत्र ध्रुव में एक दूसरे के सामने समान ध्रुव बनते हैं। N उत्तरी ध्रुव के आगे N तथा S दक्षिणी ध्रुव के सामने sध्रुव होता है। ये ध्रुव प्रतिकर्षण कर रोटर को घुमाते हैं। इस तरह ये मोटरें प्रतिकर्षण मोटरें कहलाती हैं।
प्रतिकर्षण मोटर की संरचना (Construction)
प्रतिकर्षण मोटर की संरचना में भी दो भाग होते हैं
(1) स्टेटर भाग
(2) रोटर भाग
प्रतिकर्षण मोटर में वाउण्ड (wound) रोटर तथा स्टेटर होता है। स्टेटर कुण्डलन साधारण एक कलीय प्रेरण मोटर की मुख्य कुण्डलन की तरह होती है इसके रोटर की संरचना D.C. मशीन के रोटर की तरह होती है लेकिन इसमें दिक्परिवर्तन (commulator) सतह पर ब्रुश चलायमान होते हैं। स्टेटर कुण्डलन को AC supply से जोड़ा जाता है। इसलिए इसको स्टेटर पोल के अनुदिश या इस अक्ष के लम्बवत् रखा जाता है।
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प्रतिकर्षण मोटर के प्रकार ( types)
ये मोटरें तीन प्रकार की होती हैं
(i) सादा प्रतिकर्षण मोटर
(ii) प्रतिकर्षण प्रेरण मोटर
(iii) प्रतिकर्षण प्रारम्भन प्रेरण चल मोटर
(i) सादा प्रतिकर्षण मोटर (Plain Repulsion Motor) – चित्र 1 के अनुसार सादा प्रतिकर्षण मोटर का स्टेटर प्रायः दो ध्रुव तथा प्रत्यावर्ती धारा एककलीय सप्लाई के लिए कुण्डलित होता है। इसका रोटर सामान्यतः दिष्ट धारा मोटर के आर्मेचर की तरह बना होता है। आर्मेचर में या रोटर में की गई कुण्डलन दिक्परिवर्तक पर लगे रोटर कार्बन ब्रुशों को लघु पथित किया जाता है। इससे दिक्परिवर्तक के विपरीत सिरों को लघु किया जाता है। कार्बन ब्रुशों की स्थिति, क्षेत्र ध्रुवों की अक्ष में 20° आगे रखी जाती है।
इस मोटर की गति कार्बन ब्रुशों की स्थिति पर निर्भर करती है 20° पर ही इस मोटर की अधिकतम गति होती है।
(ii) प्रतिकर्षण प्रेरण मोटर (Repulsion Induction Motor) – इस मोटर में स्टेटर की कुण्डलन को प्रेरण मोटर की तरह ही किया जाता है। जबकि रोटर में एक कुण्डलन पिंजरा प्ररूपी तथा दूसरी कुण्डलन S-E तार द्वारा होती है जिसके सिरे दिक्परिवर्तक से जुड़े होते हैं। चित्र 2 में इसकी संरचना दर्शायी गई हैं।
प्रारम्भ में मोटर को जब शुरू किया जाता है तो अधिक प्रतिघात के कारण पिंजरा प्ररूपी कुण्डलन किसी प्रकार का बलाघूर्ण उत्पन्न नहीं करती है। इस स्थिति में मोटर प्रतिकर्षण मोटर की तरह प्रारम्भ हो जाती है। जब धीरे-धीरे गति बढ़ती है तो पिंजरा प्ररूपी कुण्डलन का प्रभाव बढ़ जाता है तथा यह मोटर इस समय प्रेरण लोड पर स्थिर गति पर रहती है। इस मोटर को सीधे ही सप्लाई से जोड़ा जा सकता है।
इस मोटर की दक्षता उच्च रखने के लिए सहायक कुण्डलन को स्टेटर से अलग किया जाता है। इसे अलग से दिक्परिवर्तक पर लगे दो – कार्बन ब्रुशों से जोड़ा जाता है। मोटर इकाई शक्ति गुणक पर चलती है क्योंकि क्षरण प्रतिघात नगण्य होता है ।
(iii) प्रतिकर्षण प्रारम्भन प्रेरण चल मोटर (Repulsion Start Induction Run Motor)– प्रतिकर्षण प्रारम्भन प्रेरण चल मोटर नाम के अनुसार प्रतिकर्षण मोटर की तरह शुरू होगी, लेकिन प्रेरण मोटर की तरह चलेगी।
इस मोटर में विशेष रूप से ताम्बे की रिंग दिक्परिवर्तक के पास लगी होती है। यह लघु परिपथ रिंग 75 प्रतिशत गति पर पूरे दिक्परिवर्तक से चिपक जाती है तथा सेगमेन्ट को लघु पथित कर देती है। रोटर के चालक भी लघु पथित हो जाते हैं। मोटर प्रेरण मोटर की तरह चलती है। चित्र 3 में अपकेन्द्री स्विच दर्शाया गया है वह अपकेन्द्री बल से खुलकर रिंग को दिक्परिवर्तक से चिपका देता है तथा मोटर जब बन्द होती है तो रिंग पुनः दिक्परिवर्तक से हट जाती है।
मोटर जब शुरू होती है तो प्रतिकर्षण मोटर की तरह चलकर उत्तम बलाघूर्ण प्रारम्भ में देती है तथा 75 प्रतिशत गति पर जब लघु पथित रिंग, दिकपरिवर्तक को लघु परिपथ कर देती है तो प्रेरण मोटर की तरह चलने लगती है। इस मोटर में भी कार्बन ब्रुशों की दिशा को बदलकर घूमने की दिशा को बदला जा सकता है।
प्रतिकर्षण मोटर का कार्य सिद्धान्त (Operating Principle)
समान ध्रुवों के मध्य प्रतिकर्षण बल के कारण बलाघूर्ण उत्पन्न होने के सिद्धान्त पर यह मोटर कार्य करती है।
जब ब्रुश अक्ष को क्षेत्र अक्ष से कुछ कोण पर रखा जाता है तो आर्मेचर पर समान ध्रुवता के ध्रुव उत्पन्न होते हैं। समान ध्रुव के स्टेटर ध्रुव तथा आर्मेचर ध्रुव के मध्य प्रतिकर्षण बल लगता है। जिससे रोटर में घूर्णन उसी दिशा में उत्पन्न होता है जिस दिशा में ब्रुश को विस्थापित किया है। ।
प्रतिकर्षण मोटर काअभिलक्षण (Characteristics)
प्रतिकर्षण मोटर के अभिलाक्षणिक वक्र चित्र 4 में दर्शाए गए हैं।
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आज आपने क्या सीखा :-
प्रतिकर्षण मोटर क्या है?, प्रतिकर्षण मोटर की संरचना, प्रतिकर्षण मोटर के प्रकार, प्रतिकर्षण मोटर का कार्य सिद्धान्त, प्रतिकर्षण मोटर काअभिलक्षण, What is Repulsion Motor?, (Structure of Repulsion Motor, Types of Repulsion Motor, Working Principle of Repulsion Motor, Characteristics of Repulsion Motor.)