अल्टरनेटर में दोष कितने प्रकार के होते हैं | Faults In Alternators In Hindi

दोस्तों आज इस आर्टिकल में आप जानेंगे की अल्टरनेटर में दोष कितने प्रकार के होते हैं | Faults In Alternators In Hindi, how to fix a fault alternator,how to check a faulty alternator, which are faults in alternator, how to detect a faulty alternator: अगर आप भी है जानना चाहते हो तो इस आर्टिकल को पूरा पढ़ते रहिए | तो चलिए शुरू करते हैं 

अल्टरनेटर के प्रदोष (Faults In Alternators In Hindi)

एक अल्टरनेटर में कई प्रकार के प्रदोष आते हैं। ये प्रदोष निम्न हैं

स्टेटर प्रदोष (Stator Fault)

ये अल्टरनेटर के स्टेटर में आते हैं। ये त्रिकला आर्मेचर कुण्डली में विसंवाहक में खराबी होने से आते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं

(a) कला से भू प्रदोष (Phase to Earth Fault)- यह प्रदोष आर्मेचर टूल में आता है। यह मशीन को बहुत गम्भीर नुकसान पहुंचा सकता है। यदि प्रदोषी धारा 20A से कम होती है तो मशीन तेजी से पात (Trip) हो जाती है और जलने से बच जाती है। यदि प्रदोषी धारा 20A से अधिक होती है तो स्टेटर (Stator) जलने की अधिक सम्भावना रहती है। इस कारण पूरा लेमीनेशन (Lamination) बदलना पड़ता है जो कि बहुत महंगा होता है तथा बहुत समय लेता है।

(b) कला से कला प्रदोष (Phase to Phase Fault)- यह दो वाइन्डिंग के बीच लघुपथ आने से होता है। इसके आने की संभावना कम होती है क्योंकि कुण्डलियों के बीच बड़े-बड़े विसंवाहक लगाए जाते हैं। परन्तु जब एक बार कला से भू प्रदोष आता है तो उसके कारण अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न होती है जिसके परिणामस्वरूप यह प्रदोष आ सकता है। इस प्रदोष के कारण गम्भीर आर्किंग उच्च तापमान के साथ होती है व जनित्र आग पकड़ लेता है।

(c) स्टेटर आन्तरिक वर्त प्रदोष (Stator Inter-turn Faults)- इसमें जो कुण्डली अल्टरनेटर में काम में ली जाती है उसके बहुत वर्त होते हैं । एक कुण्डली के वर्तों (turns) में जो प्रदोष आते हैं उन्हें आन्तरिक वर्त प्रदोष कहते हैं। ये प्रदोष वर्तों के विपरीत धारा हिल्लोरों के कारण अधिक मान (L di/dt) की वोल्टता आने पर होते हैं। एकल वर्त कुण्डली में इनके आने की सम्भावना कम होती है।

रोटर प्रदोष (Rotor Faults)

इस अल्टरनेटर का रोटर फील्ड वाइन्डिंग (Field winding) से बना होता है। फील्ड वाइन्डिंग में कई वर्त (Turn) होते हैं। संवाहक से भू प्रदोष (Conductor to earth fault) तथा लघुपथ प्रदोष फील्ड वाइन्डिंग के वर्तों (Turn) के मध्य आने वाले प्रदोष हैं। ये यांत्रिक (Mechanical) तथा तापीय (Thermal) दबाव जो कि फील्ड वाइन्डिंग विसंवाहक (Field winding insulator) में आते हैं।

असामान्य प्रचालन परिस्थितियां (Abnormal Running Conditions) 

निम्न असामान्य परिस्थितियों में अल्टरनेटर में प्रदोष आ सकता है। ये परिस्थितियां निम्न हैं

  1. प्राइम मूवर असफलता दोष 
  2. क्षेत्र असफलता 
  3. अति धारा या अतिभार 
  4. लोड का असंतुलन 
  5. अवरोधक असफलता

इसमें से कुछ दोषों का वर्णन इस प्रकार हैं- Faults In Alternators In Hindi

1. प्राइम मूवर फॉल्ट- साधारणतया वैद्युत शक्ति जनरेशन के लिए कई प्रत्यावर्तक परस्पर समानान्तर में चलाए जाते हैं। यदि इनमें से किसी प्रत्यावर्तक का प्राइम मूवर किन्हीं कारणों से बंद हो जाता है तो वह मोटर की तरह कार्य करने लगता है परंतु स्वयं को सिन्क्रोनाइज बनाए रखता है तथा प्रत्यावर्तक पुनः प्रचालित हो जाता है। अतः इस प्रकार के फॉल्ट के लिए संरक्षा की आवश्यकता नहीं पड़ती, परंतु यदि प्राइम मूवर में कोई ऐसा दोष उत्पन्न हो जाए जिससे प्रत्यावर्तक मोटर के रूप में अन्य प्रत्यावर्तक से उच्च धारा लेने लगे तो पुनः शक्ति संरक्षा पद्धति प्रयुक्त करते हैं।

2. क्षेत्र असफलता- प्रत्यावर्तक की फील्ड के असफल होने के आसार बहुत कम होते है। परंतु लोड तथा मशीन की स्थिति पर निर्भर करते है। क्षेत्र परिपथ में आंतरिक धारा रिले प्रयुक्त करके मशीन को बंद किया जाता है। यदि प्रत्यावर्तक का क्षेत्र असफल हो जाता है तो कुछ समय के लिए हानि की सम्भावना नहीं रहती इसलिए प्रत्यावर्तक को बंद करने के लिए स्वयं कार्यकारी संरक्षा की आवश्यकता नहीं पड़ती।

3. अति धारा/अति भार-प्रायः प्रत्यावर्तक का (प्रतिघात) रिएक्टेन्स काफी उच्च रखा जाता है जिससे ओवर लोड पर उसे कोई खतरा नहीं रहता और इसलिए सामान्यतः प्रत्यावर्तक के लिए ओवरलोड की आवश्यकता नहीं होती। प्रत्यावर्तक के अतिभार संरक्षा के लिए अति धारा (ओवर करंट) रिले प्रयुक्त करते हैं।

4. लोड का असंतुलन- प्रत्यावर्तक पर लोड का असंतुलन सामान्यतः भू-दोष या फेज के बीच प्रत्यावर्तक के बाहरी परिपथ में फॉल्ट उत्पन्न होने के कारण आता है और यह असंतुलि : प्रत्यावर्तक की रेटेड धारा से भी कम होने पर रोटर में अत्यधिक हीटिंग प्रभाव उत्पन्न करती है जिससे रोटर का इन्सुलेशन खराब हो जाता है या रोटर की यांत्रिक स्थिरता जा सकती है।

5. इन्सुलेशन संरक्षा- प्रत्यावर्तक के अवरोधक (इन्सुलेशन) का असफल होना प्रत्यावर्तक का सबसे खतरनाक फॉल्ट है। प्रत्यावर्तक के इन्सुलेशन के असफल होने पर स्वयं प्रत्यावर्तक के द्वारा एवं अन्य प्रत्यावर्तक द्वारा फॉल्ट को फीड किया जाता है जिससे मशीन खराब हो जाती है। अवरोधक सामान्यतः निम्न कारणों से खराब हो जाता है

(a) फेज से फेज दोष

(b) फेज से भू-दोष

(c) समान फेज वाइन्डिंग पर टर्न से टर्न दोष

प्रतिशत डिफरेन्शियल रक्षण (Percentage Differential Protection)

इस विधि को बायस अवकलन रक्षण (Biased Differential Protection) या मर्ज प्राइस रक्षण (Merz Price Protection) भी कहा जाता है।

यह रक्षण दो या अधिक समान विद्युत मात्राओं (ElectricalQuantities) के बीच के सदिश अन्तर (Vector difference) को प्रदर्शित करता है। अल्टरनेटर के रक्षण में आर्मेचर वाइन्डिंग (Armature Windings) के प्रत्येक सिरे पर धारा अल्टरनेटर (Current alternator) लगाई जाती है।

श्रू प्रदोष (Though faults) के लिए तथा जब वाइन्डिंग में कोई दोष नहीं होता है तब पाइलट वायर (Pilot wire) में धारा परिणामित्र (Current transformer) में सम्पर्कों द्वारा भेजी गयी धारा का मान बराबर रहता है अर्थात् अवकलनीय धारा (Differential current) (I1 – I2) शून्य होती है।

लेकिन जब रक्षण वाइन्डिंग में कोई दोष आता है तब सन्तुलन गड़बड़ा जाता है तथा रिले की प्रचालन कुण्डली (Operating coil) में से अवकलनीय धारा (I1 – I2) बहने लगती है जिससे रिले प्रचालित होती है तथा जनरेटर का परिपथ वियोजक (Circuit Breaker) पात (Trip) हो जाता है।

अवकलनीय रक्षण प्रणाली (Differental Protection Scheme) वाइन्डिंग में उत्पन्न होने वाले प्रदोष के प्रति सुरक्षा प्रदान करती है, जैसे-कला से कला एवं कला से भू-प्रदोष ।

Faults In Alternators In Hindi

Faults In Alternators

स्टेटर प्रदोष के सन्दर्भ में जनरेटर को क्षतिग्रस्त होने से रोकने के लिए केवल परिपथ वियोजक पात (Trip) करके जनरेटर को पृथक करना पर्याप्त नहीं है, क्योंकि जनित्र का प्राइम मूवर (Prime Mover) घूमता रहता है जिससे स्टेटर वाइन्डिंग में E.M.F. उत्पन्न होता है तथा प्रदोष धारा बहने लगती है। इस धारा को रोकने हेतु धारा वियोजक के साथ धारा की अन्तः लॉकिंग (Interlocking) की जाती है। जब परिपथ वियोजक फील्ड वाइन्डिंग को प्रचालित करता है तब वह फील्ड वाइन्डिंग खुला परिपथ (Open Circuit) हो जाती है।

प्रतिशतता (%) अवकलनीय रिले पहले ऑक्सीलरी (Auxiliary) रिले को शुरू करती है, जो मुख्य परिपथ वियोजन को तथा फील्ड परिपथ वियोजक को वियोजित करती है जिससे प्राइम मूवर का घूमना बंद हो जाता है तथा अलार्म बजने लगता है।

आज आपने क्या सीखा :-

दोस्तों आज आपने सीखा कि प्रत्यावर्तकों के प्रदोष/अल्टरनेटर में दोष कितने प्रकार के होते हैं | Faults In Alternators In Hindi. इसके अलावा भी आपने जाना की how to fix a fault alternator,how to check a faulty alternator, which are faults in alternator, how to detect a faulty alternator,what are the rotor faults in alternator, stator faults in alternator, types of alternator protection, alternator protection wikipedia, field suppression of an alternator, how to know a faulty alternator, different types of faults in alternator, what are the different types of alternators. के बारे में भी आपने जाना तो अगर आपको मेरे द्वारा दी गई जानकारी पसंद आई है तो अपने दोस्तों के साथ में इसे शेयर कर सकते हो और अगर आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव है तो नीचे कमेंट करके बता सकते हो

1 thought on “अल्टरनेटर में दोष कितने प्रकार के होते हैं | Faults In Alternators In Hindi”

  1. शिव प्र काश वर्मा

    कार्वन ब्रस और ब्रसलेस अल्टीनेटर में कौन ज्यादा अच्छा है एवं टिकाऊ है।

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